मजबूरी ही पैदल चलती

मजबूरी ही पैदल चलती

मजबूरी ही पैदल चलती
सिर पर लादे धूप

आँतों में अंगारे रखकर
चलते जाते पाँव
लेकिन इनको भान नहीं अब
बदल चुका है गाँव
लाचारी, उम्मीदें हारी
नहीं कहीं भी छाँव
और राह में मिलते केवल
सूखे अंधे कूप

भूख, रोग, दुर्घटना, चिंता
है मौसम की मार
हिम्मत कब तक साथ निभाये
किस्मत ही बीमार
कहाँ गरीबी को मिल पाया
कोई भी तीमार
क्रूर समय भी दिखलाता है
सच कितना विद्रूप

फोर लेन पर घायल सपने
खोजें कहाँ पड़ाव
अलगावों से जूझ रहे थे
मिले नये अलगाव
अंजानी दहशत फैली है
कैसा यह बदलाव
कैसे दृढ़ फिर हो पाएगा,
ढहा हुआ प्रारूप।


Image : The Tired Gleaner
Image Source : WikiArt
Artist : Jules Breton
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गरिमा सक्सेना द्वारा भी