इन अनचाहें बदलावों से

इन अनचाहें बदलावों से

इन अनचाहे बदलावों से
डर लगता है

हम अपने कंफर्ट जोन को
त्यागें कैसे
सीधी पटरी छोड़ वक्र पर
भागें कैसे
छिल जाएँगे घुटने ठोकर
अगर लगी तो
हमें अभी भावी घावों से
डर लगता है

साँचों में ढलने से पहले
गलना होगा
नये रूप में अब तो हमको
ढलना होगा
बदली सूरत क्या पहचानेंगे
खुद ही हम
दर्पण के हावों-भावों से
डर लगता है

मन बच्चा बन, पैर पटकता,
बाल नोंचता
है जड़त्व से रुका हुआ मन
नहीं सरकता
कब, क्यों, कैसे, कहाँ, अगर
औ मगर सताते
बहकावों से, अलगावों से
डर लगता है

रहा प्रकृति का नियम सदा
परिवर्तित होना
वही बचा है जो सीखा
अनुकूलित होना
रुका हुआ जल तालाबों का
गँदलाता है
जीवन को इन ठहरावों से
डर लगता है


Image :A Corner of the Artist’s Room in Paris
Image Source : WikiArt
Artist : Gwen John
Image in Public Domain

गरिमा सक्सेना द्वारा भी