जाड़े की धूप सुनहली

जाड़े की धूप सुनहली

बाट जोहते प्राण, तुम्हारी
गई विरह की रात।
दुख पर सुख की मधुर पुलक-सा
आयी मिलन प्रभात।
–तुम उतनी मीठी, जितनी
जाड़े की धूप सुनहली।
प्यास न जाती मन की, होते
सरस न शुष्क अधर दल;
फिर भी बड़ा मधुर लगता है
बिछुड़े नयनों का जल।
–तुम उतनी मनहर, जितनी
पावस की बूँदे पहली!
ठिठुर, सिकुड़कर पंछी सत्वर
चले नीड़ की ओर।
प्रिया-अंक में सिमट सो गया
मानव-जग का शोर।
–तुम उतनी एकांत शांत,
जितनी जाड़े की रात!
दिवा-निशा की कठिन तपन से
थका जगत अविराम
चाह रहा है तनिक शांति से
कर लेना विश्राम।
–तुम उतनी मादक, जितना
ऊँघता ग्रीष्म का प्रात!


Image: Steps in Sunlight (India)
Image Source: WikiArt
Artist: Edwin Lord Weeks
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