जय-हार
- 1 April, 1951
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- 1 April, 1951
जय-हार
जय-माला में हार हमारी
मोती बन-बन गुँथती जाती!
आती जो कि विजय के पहले
वह तो हार नहीं कहलाती॥
(वासना और प्रेम)
पलकों में जो प्यास बनी है,
अधरों में उच्छवास बनी है,
वही वासना प्रेम बनी जो–
दूषित प्यार नहीं कहलाती।
आती जो कि विजय के पहले
वह तो हार नहीं कहलाती!
(पाप और पुण्य)
पाप पुण्य को चमका देता,
फिर क्यों मन को धमका देता है?
मन का भूला-भूला भूल
पाप-विकार नहीं कहलातीं!
आती जो कि विजय के पहले
वह तो हार नहीं कहलाती।
(व्यथा और करुणा)
जग में यह दुख क्यों होता है?
सुख में भी जग क्यों रोता है!
व्यथा बनी जो विगलित करुणा
हाहाकार नहीं कहलाती।
आती जो कि विजय के पहले
वह तो हार नहीं कहलाती।
(चिंता और आशा)
जीने में विश्वास न टूटे,
पीड़ा में भी हास न छूटे!
चिंता जो बन जाती आशा
मन का भार नहीं कहलाती।
आती जो कि विजय के पहले
वह तो हार नहीं कहलाती!
(मृत्यु और जीवन)
चलकर पथिक विराम न ले क्या?
थक कर भी विश्राम न ले क्या?
मृत्यु नया जीवन लाती जो
वह संहार नहीं कहलाती।
आती जो कि विजय के पहले
वह तो हार नहीं कहलाती।
Image: Victory (Gorynych-the-Serpent)
Image Source: WikiArt
Artist: Nicholas Roerich
Image in Public Domain