जीवन का व्यापार
- 1 September, 1951
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- 1 September, 1951
जीवन का व्यापार
बीत गए जो दिन, उनका है आँसू ही आभार!
सखि, यह जीवन का व्यापार!
क्षण-क्षण ही परिवर्तित होती रही धरा है,
बिंदु-बिंदु हो रिक्त सदा ही सिंधु भरा है,
मधुमासों में पलकर पल्लव-पात झरा है,
टूट गए जो तार नहीं आई उनमें झंकार!
सखि, यह जीवन का व्यापार!
साँसों की लघु लहरें जाकर मिलीं पवन में,
सखि प्राणों के गीत निखरते गगनांगण में,
आशाओं के फूल बिखरते हैं मधुबन में,
स्नेह गई जब, नहीं दीप को मिला शलभ का प्यार!
सखि, यह जीवन का व्यापार!
प्रकृति भवन के विभव भूलते रहे किरण में,
रूप-माधुरी शीर्ष प्राप्त कर पड़ी चरण में,
अवगुंठन तज कंठ-बाँसुरी बजी नमन में,
कनक कणों में खोकर निशि ने पुन: किया सिंगार!
सखि, यह जीवन का व्यापार!
Image: Four Ages in Life
Image Source: WikiArt
Artist: Edvard Munch
Image in Public Domain