कालरथी
- 2 March, 2015
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- 2 March, 2015
कालरथी
यदि मैं पथ भूल जाऊँ
या पथ को नहीं हो स्वीकार मेरा चलना
वह बना ले अपने को अगम्य
अथवा कर दे तुझे घोषित अपांक्तेय
या मुझे ही नहीं हो स्वीकार
उस पथ पर चलना
जिस पर चिह्नित हों असंख्य पैर
जो हो गया हो क्षत-विक्षत पदाघात से
जहाँ दौड़ रहा हो काल-अश्व
और खड़ा हो सवार
तो क्या मुझे
चलना ही छोड़ देना चाहिए!
मुझे जिसने उँगली पकड़
चलना सिखाया था,
था वह कोई कालरथी
क्षणांश में वह हो गया था विदा
यह कहते कि चलना हो तो आ
मेरे पीछे आ
मुझसे आगे बढ़
मुझे पराजित कर
तब से मैं
दौड़ता ही जा रहा हूँ
सीधे-टेढ़े रास्तों पर
उसे खोजता ही जा रहा हूँ
मालूम नहीं
कितना पीछे छोड़ गया है मुझे
मेरा वह सहचर
कभी उसने कहा था–पैर पथ बनाते हैं
पैर और पथ के सहयोग से
जन्म लेती है गति
और चलते-चलते बन जाती है लीक
उस पर चलनेवाले
अपने को मानने लगते हैं गतिशील
धीरे-धीरे
उनकी यह पथबद्ध यात्रा हो जाती है यांत्रिक
शैशव में सुनी उसकी वे बातें
समझ नहीं पाया था
न आज ही कहीं दिखाता है
उसके पदचिह्नों वाला रास्ता
फिर भी मुझे दौड़ते ही रहना है
अनजानी दिशाओं में
उसे ढूँढ़ते ही जाना है
हो सकता है थके अश्व पर
कहीं हाँफता हुआ मिले
मेरे आगे निकल जाने की कामना लिये
Image: A Path in the Woods, Pontoise
Image Source: WikiArt
Artist: Camille Pissarro
Image in Public Domain