कजरौटा
- 1 April, 2016
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/kajrauta-hindi-poem-by-shweta-shekhar/
- 1 April, 2016
कजरौटा
निरख रही है वह
सूनी सूनी आँखों से
ताखा पर रखा दीया
जल रहा धीरे-धीरे
समय की भट्टी में सुलग रही
वह भी धीरे धीरे
घुटन का ज्वार जब मन में बढ़ जाता
स्मृति शेष का अवशेष
चाँदी का वह कजरौटा
रह रह कर याद दिलाता
तुम भी कालिख तन
मैं भी कालिख तन
लड़की बेबसी से मुस्काती
मन ही मन कुछ
कहने को है अकुलाती
तुम कालिख माथे पर
नजर बचाने खातिर
मैं कालिख माथों पर
नजर झुकाने खातिर
मान तुझे अपमान मुझे
जीवन भर और क्या पाया मैंने
बेबसी से होंठ सिले
अंगीठी सी सुलगती रही
तुम्हीं बताओ कजरौटे
धिया का होता
ऐसा निर्मम भाग्य क्यों?
Original Image: The Milkmaid
Image Source: WikiArt
Artist: Johannes Vermeer
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork