कली खिली कछार में

कली खिली कछार में

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
मदिर कली सुला सकी कहीं न मुग्ध राग को
गुथे हुए हुलास में विकीर्ण गुदगुदी हँसी
हँसी कि फूलने लगी फुहार की मरोर में
विहाग सींच राग खींच रागिनी चली लसी–
कनक-प्रकीर्ण किंकिणी, रजत-चुनी चढ़ाइयाँ
छनन छनन चरण अनंत आर पार नापता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
निदाध नीर बन गया कि पार हो गई लहर
सुगंध की भरी तरी किलोल-फूल लोढ़ती
न बैठ, चल पवन, अजेय चेतन उछल रही
लहर कि प्राण में पिये पयोधि को पछोरती
क्षितिज कपोल चूम कर अरुण अधर चुरा रहा
किरण कटाक्ष मारती कि कौन पार झाँकता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
‘पिया कहाँ’ प्रिया पुकारती उष:कगार पर
गगन न गुनगुना रहा अभी कि गाँव दूर है
सगुन वन प्रदेश बीच चुन रही बटोहिनी
हृदय, छलक ललक ललक, विछल न, पाँव चूर है
अपार पीर की डगर अपार प्रेम के लिए
पिया वहाँ जहाँ न प्यार पंथ-पार जानता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
कभी न हार हिम हुई तुषार की तपस्विनी
हिमालयी हृदय किरण-निकुंज में उघारती
पिघल रहा विराग फाग खेलतीं कि घाटियाँ
कि चूम-चूम प्राण को पयस्विनी निखारती
कि झूम-झूम घूम-घूम यूथिका विनोद में
मिलन-कुटी सँवारती, प्रणय दुधार नाचता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
विछोह डूब-डूब छोह के अछोर कोर पर
निहारता कि नींद भीग और स्वप्न देखती
सुहाग-स्वर्ण खोल खोल शैल-पाँखुरी खुली
तुषार पर परी पराग-लोरियाँ बिखेरती
मुझे उतार दो अहे विहग, उसी विहार में
जहाँ कि प्यार पंख झार गीत-हार गाँछता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
डँसे हुए उदार प्रेम, तुम उदार ही रहो
दरार हो गई हरी कि कूक कूक पातियाँ
कछार के वसंत को पढ़ा रहीं अनंत लय
कि प्रेम फूलता वहीं फटीं जहाँ कि छातियाँ
बयार-वृंत पर जलद-प्रसून की हिमांचला
झुला रही हृदय-गगन कि प्राण पेंग माँगता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
न पढ़ सकी ललाट पर मयंक लेख रोहिणी
कलंक की जुन्हाइयाँ न पोंछतीं परम शिखा,
गगन प्रदीप में अमर कपूर-कांत जीवनी
न पढ़ सकी पलक अरे, कि प्राण ने इसे लिखा
सिहर सिहर नशीथ में विराट लेखनी चली
कि वीण का किरीट व्योम-शीश पर अलापता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
छँहा रहा कपोत-पोत पैजनी पसार कर
कि पाँख पाँख की रही उधार आँख चंद्रिका
उड़ी नयन कपोतिनी कि चंचु-फूल चूम लूँ
समा गई उड़ान ध्यान धो रही कि मल्लिका
सुपर्ण-रत्न-निर्झरी, निसेनियाँ उड़ेल दे
चढ़ू पकड़ ज्वलंत ज्वार मंद्र तार माँजता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
दिगंत-दीर्घ मेखला उठा रही महा मुकुर
अनंत अंक में प्रगाढ़ प्रेम मोहिनी मिली
मदाक्ष ज्योति व्योम में विभोर बिंब बाँचती
शिखर शिखर प्रहास पुष्प माल-मंजरी खिली
सजा रही प्रियंवद शरत-शिरीष-पालकी
कि जा रही अपार मुक्ति; ब्रह्म सेतु बाँधता।

कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।
क्षिति-प्रभा छलक उठी, परास्त नील छक गया–
प्रकृति दिवाँगना अरी, उभार प्राण-अंजली
खड़ी समान सुंदरी अचंचला अखिल-कला
अलख दिशांशु-शीर्ष-तारकावली पहन चली
विजय-वितान तान श्रेय-प्रेयसी यशस्विनी
सँजो रही स्वदेश दीप्ति, सिंह द्वार जागता।
कली खिली कछार में
कुसुम दुलार माँगता।


Image: Flower Garden
Image Source: WikiArt
Artist: Gustav Klimt
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राम अधार सिंह द्वारा भी