कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी

कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी

कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा,
डोल रहा मलयानिल वन-वन मृदु श्वासों का संबल ले कर,
कूक रही कोकिल मृदु ध्वनि में लेकर एक तुम्हारा मृदु स्वर,
फूल खिल रहे हैं वन-वन में लकेर रूप तुम्हारा मधुमय,
मूर्तिमान मधुमास, एक अद्भुत सौंदर्य विलास तुम्हारा!
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा!

ये ग्रह, ये नक्षत्र, नील नभ के ये शत-शत स्वर्णिम दीपक,
दिग्बंधुओं की मीठी चितवन, श्री शोभा की प्रतिमा अपलक,
इन नीलाभ शैल-शिखरों से झर-झर करते ज्योत्स्ना-निर्झर,
यह अनंत आकाश स्नेहमय सुंदर स्वप्न-निवास तुम्हारा!
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा!

सागर-गर्जन में होती उद्घोषित नित्य तुम्हारी वाणी,
मौन स्वरों में कहते तारे नित्य तुम्हारी मर्म-कहानी,
कण-कण करता नित्य तुम्हारी सत्ता का नीरव निर्देशन,
संसृति के अणु-अणु में देख रहा हूँ अंतर्वास तुम्हारा!
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा!

उषा तुम्हारे अमर राग की स्वर्णिम आभा से अनुरंजित,
संध्या अरुण पराग तुम्हारा धारण कर शोभित श्रीमंडित,
शरत-पूर्णिमा बद्ध तुम्हारे अक्षय ज्योति: आलिंगन में,
जग की दीपशिखा में जलता शाश्वत स्नेहिल श्वास तुम्हारा!
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा।


Image: Trees in Flower
Image Source: WikiArt
Artist: Henri Martin
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