खूशबू

खूशबू

बरसों बाद
आज भी मेरी स्मृति में कौंध उठती हो तुम
अपनी हँसी
और सुवासित हथेलियों के साथ

सर्दियों की धूप में
एक फुरसत वाली नर्म-नर्म सी दोपहर
हरे धनिए की पत्तियों को
बहुत देर तक
तोड़ती रही थीं तुम
फरवरी की नर्म दोपहरी का मन
कुछ और मुलायम हो उठा था
धनिए की
ताजा-हरी नर्म पत्तियों को
अपनी हथेली में
समेटते हुए
कुछ अल्हड़ सी आत्मीयता से
तुमने कहा था-
‘तुम्हें पसंद है न धनिए की
खट्टी-मीठी चटनी’!

आज जिंदगी के तमाम कड़वे
खट्टे, मीठे दिनों के बीच
कभी भी याद आ जाती है
फरवरी की उजली नर्म दोपहर
और धनिए की खुशबू वाली
तुम्हारी हथेलियाँ
जानती हो उस दिन
बालकनी में खिले फूलों ने भी
पूछा था तितलियों से
‘तुम्हें भी पसंद है न हमारी खुशबू’
उस दिन तितलियाँ बहुत देर तक
फूलों के कांधों पर सोयी रहीं थीं
और फरवरी की नर्म दोपहरी
अपनी आँखें बन्द कर
धीरे से मुस्करा उठी थी।


Original Image: The Artists Wife Sitting at a Window in a Sunlit Room
Image Source: WikiArt
Artist: Carl Holsoe
Image in Public Domain
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