किसकी ध्वनि कानों में आई
- 1 December, 1951
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- 1 December, 1951
किसकी ध्वनि कानों में आई
किसकी ध्वनि कानों में आई
लगता है कोई समीप आ
कहता अरे मनुज! तुम जीवन
भर जग जन-उर में संजीवन
यही रागिनी मन में छाई।
ले कूची कर्तव्य-प्रेम की
धरा-हृदय पर चित्र खींच दो
मन-पाटल रस बीज सींच दो
चाह लता क्षण में गदराई।
लोचन-नभ में जगी कामना
घिर आया अधिकार कर्म बन
भेद खोजकर मर्मीं नूतन
प्रखर कल्पना छवि मुस्काई।
सृष्टि-रंध्र की कथा, युगों से
धड़कन में सुनता आया हूँ
जीवन-निधि पा खिल पाया हूँ
उम्मिल उर-गंगा लहराई।
भागी अंध-प्रहर की छलना
चेतनता कहती, नर चलना
सीख, दीप्त रवि-शशि से कढ़ना
जड़ता की प्रतिमा घबड़ाई।
बीन बजी, स्वर-लहरी फैली
रश्मि गीत की कड़ी रुपहली
कर्म भूमिका, जग चमकीली
नाच रही ध्वनि पर बौराई।
Image: News
Image Source: WikiArt
Artist: Mikalojus Konstantinas Ciurlionis
Image in Public Domain