क्या बोलूँ, क्या बात है!

क्या बोलूँ, क्या बात है!

क्या बोलूँ, क्या बात है!
नील कमल बन छाईं आँखें;
राग-रंग ने पाईं पाँखें;
बाण बने तुम इंद्रधनुष पर!–
जग पीपल का पात है!!

अपलक दिन के बीते पल-छिन;
माँग भरे क्यों, संध्या तुम बिन!
लुक-छिपकर क्या झाँक रहे हो?–
देखो, कैसी रात है!!

घर सूना, बाहर भी सूना;
झंझावात, अँधेरा दूना;
कंपित दीप देहरी पर तुम–
आँगन में बरसात है!
क्या बोलूँ, क्या बात है!!


Original Image: Terrace in the Rain in Marquayrol
Image Source: WikiArt
Artist: – Henri Martin
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork