महाकवि की कृपा

महाकवि की कृपा

कल शाम को–
अशोक राजपथ पर।
मिले कविवर मित्र मेरे
हाथ में लिए रजिस्टर।
पूछा–‘यह क्या है?’
बोले–‘बहुत व्यस्त हूँ।
महाकाव्य लिखने में।
अभी तो आधा ही लिखा है
चलिए न लाँन में
सुनाऊँ दो-चार सर्ग।’
बोला मैं–‘जल्दी में हूँ
राशन लेने जाना है
बच्चों को खिलाना है’
लेकिन, वे माने नहीं
बिठाया मुझे रिक्शे पर
और लान के पूरब में
बिजली के क्षीण प्रकाश में
ले गये लाद कर मेरी जिंदा लाश को
और पाँच घंटे दो मिनट तक
सुनाते रहे अपना महाकाव्य
और जब लौटा दुकान पर,
ताला था लगा वहाँ।
लौट आया कार्ड लेकर वापस
सो गए बीवी-बच्चे भूखे ही
मगर मैं सोचता रहा–
धन्य हैं भारत के महाकाव्य!
और उनके रचयिता!!


Image: Ebru (attributed)
Image Source: WikiArt
Artist: Hatip Mehmed Efendi
Image in Public Domain