महात्मा गाँधी के प्रति

महात्मा गाँधी के प्रति

एक योद्धा-सा चला तू,
संत बन कर मर गया।
अग्नि-ज्वाला-सा उठा तू,
फूल होकर झड़ गया।
तू लड़ा अन्याय से,
दुर्नीति से लोहा लिया।
हे तपस्वी ! स्वर्ग को भी
पैर से ठुकरा दिया।
धैर्य लेकर तू हिमाचल–
सा अडिग रण में रहा।
वज्र-सा उपहार सिर पर
मुस्कुरा तूने सहा।
दीप-सा आलोक कोमल
तू हृदय में भर गया।
एक योद्धा-सा चला तू,
संत बन कर मर गया।
रात-दिन जलता रहा तू
पुण्यतप की आग से।
और हँसता ही रहा तू
प्रेम से, अनुराग से।
स्पर्श जिसको कर दिया।
वह धन्य जीवन हो गया।
पद जहाँ तूने रखा, वह
विजन नंदन हो गया।
हे अभय के देवता ! तू
काल से भी लड़ गया।
एक योद्धा-सा चला तू,
संत बन कर मर गया।
तू चिरंतन शांति-सुख–
सौंदर्य का आदर्श था।
एक मानव-मूर्ति में
संपूर्ण भारतवर्ष था।
निर्बलों का बल दरिद्रों का
सुवर्णागार था।
मुक्ति का संदेश-वाहक
सत्य का अवतार था।
तू युगों से दग्ध जगका
मुक्त बंधन कर गया।
एक योद्धा-सा चला तू,
संत बनकर मर गया।
तू कलह के घोर वन में
प्रेम का संगीत था !
शोक-सागर से मथित
आनंद का नवनीत था।
वज्र-से सुकठिन हृदय में
पुष्प की सुकुमारता।
वेश भिक्षुक-सा बना,
पर सिंधु-सी समुदारता।
घोर संशय में मरण भी
देख मुझको पड़ गया।
एक योद्धा-सा चला तू,
संत बन कर मर गया।
देव क्या आया यहाँ
बलिदान होने के लिए?
और आजीवन रहे हम
क्या न रोने के लिए?
तू प्रबल ज्वालामुखी, जीवंत तू विद्रोह था।
वायु-सा निर्बंध था तू,
अग्नि-सा निर्मोह था।
आप अपनी शक्ति से तू,
मृत्यु-सागर तर गया।
एक योद्धा-सा चला तू,
संत बन कर मर गया।


Image: Gandhi during the Salt March March 1930
Image Source: Wikimedia Commons
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