मेघ गीत

मेघ गीत

भ्रम न मेरे रूप की हो कल्पना में
मैं किसी की आँख का काजल नहीं हूँ।

एक रेखा भी कहीं खिचती क्षितिज पर
कामना निर्बंध आ-आ कर समाती।
बूँद ज्यों झर कर कभी आई धरा पर
साधना झकझोर मन को त्यों डिगाती॥
किंतु अनजाने न कोई भूल बैठे
मैं किसी की प्रीत का पागल नहीं हूँ।

इंगितों पर बन रही उद्दाम सरिता
गति उखड़ती साँस में संजीवनी धर।
सिंधु का आवेग नभ को बाँध लेता,
वेदना के रूप को नभ और जी भर॥
सत्य से यह दूर उतनी स्वप्न जितनी,
मैं किसी की तीर घायल नहीं हूँ।

खोल काली रात में जब पाश अपने
वक्ष से लग कर उषा के गुनगुनाता।
एक मस्ती-सी उतर आती, निमिष में
स्वर लहरियों पर शिखी का नृत्य आता॥
गूँज उठती मंद्र ध्वनि से सृष्टि, लेकिन
मैं किसी के चरण की पायल नहीं हूँ।

जीव-जड़ का मोह जीवन के लिए, फिर
चित्र सारी प्रकृति के घुँघले निखरते।
मैं अकेला क्रम कहीं भी तोड़ दूँ, तो
बुझ चले सब प्राण के दीपक सिहरते॥
दो उठा विश्वास यह, विभ्रांत मन का
मैं तुम्हारे शून्य का बादल नहीं हूँ॥


Image: Snipe in Rain
Image Source: WikiArt
Artist: Ohara Koson
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