मेरे नयनों की वीणा पर

मेरे नयनों की वीणा पर

मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे
पलकों के तारों पर मन के सातों स्वर मुखर हुए जाते,
मुरझाए फूल धूलकण में भी मिलकर अमर हुए जाते,
तुम क्या जानो बरसात चातकी की न प्यास हर पाती है
स्मृति के सुमनों से सुरभित रहता सदा स्नेह-संसार रे
मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे;

प्राणों का गगन इंद्र धनुषी रेखाओं से रंजित-चित्रित,
अंतर्मन के किस कोने में कोयलिया कूक रही किंचित
पीयूष-स्रोत सी बह निकली मेरे जीवन की अभिलाषा
बस पाते ही तेरी पगध्वनियों का समतल आधार रे
मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे।

पहले-पहले मेरे चेतन के सन्मुख सुंदर सृष्टि मिली,
मोहन की वंशी गूँज उठी अरमानों की अमराई में।
मेरे मन की राधा ऐसी संवेदित पहली बार रे,
मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे!


Image: Rainbow
Image Source: WikiArt
Artist: Arkhip Kuindzhi
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रमेश किरण द्वारा भी