मुझे लौटकर जाने दो

मुझे लौटकर जाने दो

मुझको वापिस बुला रहे हैं,
मुझे लौट कर जाने दो!
एकबार फिर बीते सपनों से
संसार सजाने दो!

मुझको वापिस बुला रहे हैं
वे दिन, जीवन के प्यारे;
जब खिलते थे दिन ही में नभ-
वन में जूही के तारे!

वह अतीत सब से सुखदायक,
घड़ियाँ सब से मतवाली;
मुझे बुलाते फूल-फूल हैं,
बुला रही डाली-डाली!

महाकाल के भूतगर्भ में
मेरा जो शैशव सोया;
उसे जगाऊँगा जाकर, जो
मिट्टी में युग से खोया!

मेरे जनम-जनम के साथी
मुझको वापिस बुला रहे!
जाने, कब से वे मुझको
मीठे सपनों पर झुला रहे!

राजमार्ग का पथिक, गाँव की
पगडंडी पर आ जाता;
दूर, किसी बरगद के नीचे,
बैठ छाँह में सुस्ताता!

मेरी याद सताती होगी
किसी बालिका को भोली!
जिसके प्यार-भरे अंचल की
गाँठ दाँत से थी खोली!

आह! थका हूँ मैं, चिंता से
जीवन बना उदासी है!
एक घूँट के लिए, न जाने,
कब से आत्मा प्यासी है!

मुझे लौटकर जाने दो अब,
मेरे प्राण उड़े जाते!
दिन-भर घूम, शाम को पंछी
भी तो फिर घर ही आते!

मुझे लौटकर जाने दो उस
भाव-लोक में चिर-स्थाई!
मैं न किसी का, और न कोई
मेरा था उत्तरदायी!

अपने उस आनंद जगत् में
मुझे लौटकर जाने दो!
एकबार फिर मुक्त-कंठ से
उस अतीत में गाने दो!

उजड़ गया जो स्वर्ग पुरातन,
उसको पुन: बसाने दो!
एकबार फिर वृंदावन में
मुझको गाय चराने दो!

तान बाँसुरी की उठने दो
फिर प्रसन्न वंशीवट पर!
आँख-मिचौनी चलने दो फिर
अनायास यमुना-तट पर!

जहाँ भोर होते ही घर-घर से
आता दधि-मंथन स्वर!
मंदिर-मंदिर से बह चलता
मधुर-मधुर सुख का निर्झर!

द्वार-द्वार पर स्रोत अमृत का
बहा नंदिनी देती है!
रवि की किरण सरोज-सुमन को
आलिंगन कर लेती है!

माखन-मिसरी लिए हाथ में
जननी मुझे बुलाती है!
तुलसी के नीचे प्रदीप जो
जला साँझ में जाती है!

झूम-झूम कर लता बुलाती,
बुला रहे पत्ते-पत्ते!
मधुमक्खी करती है गुंजन,
लगे जहाँ मधु के छत्ते!

यद्यपि है यह तुच्छ कल्पना,
फिर भी चित्ताकर्षक है!
यह अभिनय क्या नहीं, न जिसके
आगे कोई दर्शक है?

खींच रहा कोई आकर्षण,
जब प्रभात-संध्या-वेला!
पनघट पर लगता है सुंदर
ग्राम-युवतियों का मेला!

एक नीम का पेड़, जरा-सा
हटकर जिससे एक कुआँ!
और झोपड़ी एक वहीं है,
रंधन का उठ रहा धुँआ!

उसी देश ने मुझे पुकारा,
एक निमंत्रण आया है!
पहुँची अब तक नहीं आज की
जहाँ दानवी माया है!

वहीं किसी के मूक प्रेम-से
अचल शांति-सुख पाने दो!
रोको नहीं एक क्षण भी अब,
मुझे लौटकर जाने दो!


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