निर्झर
- 1 November, 1951
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- 1 November, 1951
निर्झर
हम पहुँचे झरने के समीप, था एक मौन सुनसान वहाँ!
बस गूँज रहा केवल निर्झर का मोहन मादक गान वहाँ!
सब ओर हँसी, सब ओर खुशी, सब ओर मधुर मुसकान वहाँ!
दुनिया के दुख-अभिशाप सभी बन गए सौम्य वरदान वहाँ!
है खड़ी पहाड़ी उभय ओर, पानी बहता है बीच-बीच!
यह महा भयंकर उग्र रूप, लहरों का जीवन ऊँच-नीच!
झरना करता चीत्कार कभी, फिर भी हम मोद मनाते हैं!
पुरवैया में बादल उड़ते, रवि रह-रह देता आँख मींच!
हम अनुपम दृश्य निहार रहे, सुध-बुध सब भूल-भूल अपने!
जीवन में क्या-क्या उथल-पुथल, जाग्रत में भी क्या-क्या सपने!
कुछ सोच-सोच हम मौन हुए मानस में मची तभी हलचल–
‘जल से बादल,-बादल से जल’–यह कितना परिवर्तन पल-पल
ऊपर से पानी गिरता है, द्रुतगति से बहता जाता है!
कितने पत्थर, कितने कंकड़ वह कहाँ-कहाँ पहुँचाता है!
नीचे बन जाती नदी एक, उसमें भी ऐसी तेज धार!
वह पेड़ उखड़ कर गिरा अभी, जो रह-रहकर उतराता है!
चट्टानों पर गिरती धारा, फिर बूँदें उछल-उछल पड़तीं!
मेरे तन पर कुछ गिरीं अभी, मन में मेरे हलचल करतीं!
मैं इसी तरह बैठूँ सुख से बस इसी तरह बूँदें आवें!
पुरवैया की तानें पेड़ों के पत्तों में क्या-क्या भरतीं!
फिर फौवारे से उठे अरे, कुछ दूर गगन में छितराए!
उनमें दिखलाते रंग कई, वे दृश्य अपूर्व हमें भाए!
बनते कितने ही इंद्रधनुष, पल-पल में मिटते जाते हैं!
रह-रहकर रंग बदलता है, जग देखे आकर ललचाए!
Image: The Waterfall
Image Source: WikiArt
Artist: Henri Rousseau
Image in Public Domain