ओ मेरे घर

ओ मेरे घर

ओ मेरे घर
ओ हे मेरी पृथ्वी
साँस के एवज़ तूने क्या दिया मुझे
-ओ मेरी माँ?

तू ने युद्ध ही मुझे दिया
प्रेम ही मुझे दिया क्रूरतम कटुतम
और क्या दिया
मुझे भगवान दिए कई-कई
मुझसे भी निरीह मुझसे भी निरीह!
और अद्भुत शक्तिशाली मकानीकी प्रतिमाएँ!

ऐसी मुझे जिंदगी दी
ओह
आँखें दीं जो गीली मिट्टी का
बुदबुद-सी हैं
और तारे दिए मुझे अनगिनती
साँसों की तरह
अनगिनती इकाइयों में
मुझसे लगातार दूर जाते
मौत की व्यर्थ प्रतीक्षाओं-से!

और दी मुझे एक लंबे नाटक की
हँसी
फैली हुई
दर्शकशाला के
इस छोर से उस छोर तक
लहराती कटु-क्रूर
फिर मुझे जागना दिया, यह कहकर कि
लो और सोओ!
और वही तलवारें अँधेरे की
अंतिम लोरियों के बजाय!

इन्सान के अँखौटे में डालकर मुझे
सब कुछ तो दे दिया।
जब मुझे मेरे कवि का बीज दिया कटु-तिक्त।

फिर एक ही जन्म में
और क्या-क्या चाहिए!


Original Image: Country Home
Image Source: WikiArt
Artist: Frederic Edwin Church
Image in Public Domain
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