पंद्रह अगस्त
- 1 August, 1953
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- 1 August, 1953
पंद्रह अगस्त
भारति, भारत ने तिरंग से तेरा बंदनवार सँवारा,
स्वागत में, मणिदीपोंवाला, धरती पर आकाश उतारा!
(1)
मंगल कलस सुवासित जल के, जो छलके पड़ते अनजाने,
सौध-द्वार पर सजे; सजाए; गाए गाने नए-पुराने;
जिन गानों के शब्द-अर्थ पर वाद्य-निनाद घुमड़ कर छाया,
कौन कहे, ऋजु, जड़-मंत्रों को चेतन-यंत्रों ने बहलाया!
आत्मा का धन तो गोपन है, बाहर बहु वैभव विस्तारा!
भारति, आज तिरंगे ने है तेरा बंदनवार सँवारा!!
(2)
सच है, हिम-निर्मल तेरा सिर,–जिस पर चंद्र-किरीट-छटा है,
और, चरण-चुंबन को चंचल जलनिधि सब विधि बढ़ा-घटा है,
अन्य द्वीप से ला-ला कर नित ललित लवंग-पुष्प का परिमल–
विकच रूप का स्वेद सुखाती पावन पवन गले लग शीतल,
ताल-तमाल-मधुर-मर्मर में तेरे उर के सुर की धारा!
भारति, भारत ने तिरंग का सुंदर बंदनवार सँवारा!!
(3)
झुक-झुक उझक-उझक लतिकाएँ कुंकुम-कनक-पराग लुटातीं,
तुहिन-मसृण, मखमली गलीचे-सी दूर्वाएँ हैं बिछ जाती,
पारस-परस सरस तलवों का धन्य बनाता उनका जीवन,
चाप-चाप पर आपा खोतीं, बोतीं नव प्रवाल, मुक्ता-गण,
वलि-वलि जाने की व्याकुलता साँस-साँस को लगती कारा!
भारति, आज तिरंगे ने है तेरा बंदनवार सँवारा।
(4)
पर अतीत-संगीत-सदृश यह सब अब लगता ऐसा-वैसा,
कब प्रत्यक्ष प्रमाण मानता? अब सब राहु-ग्रस्त-शशि जैसा!
रिक्त उदर, कौशेय वसन है,–सूखे में सुरचाप तना है!
नील अधर पर दुग्ध दशन की स्मित का भी आगमन मना है,
अभिनंदन-ध्वनि तरल, सजल है; किंतु कंठ का शुष्क किनारा!
भारति, भारत ने तिरंग से तेरा बंदनवार सँवारा!!
(5)
हिंसा पहुँच चुकी सीमा पर, हैं असत्य ने खीमे डाले,
सूचिभेद्य तम, कुछ न सूझता, यों करतल पर दीपक बाले;
सत्य नहीं कुछ, केवल दावा; और अहिंसा, एक चुनौती!
अतुलनीय हम वचन-रचन में, किंतु कर्म में मान-मनौती!
‘तमसो ज्योतिर्गमय’ रहे कह; किंतु ज्योति को तम पर वारा!
भारति, भारत ने तिरंग से तेरा बंदनवार सँवारा!
(6)
नाव नई, अनुकूल धार हो, तो फिर, मिले, मिले न किनारा,
किंतु ज्वार में झाँझर तरणी, कर्णधार लहरों का मारा,
ऐसे में कैसा स्वागत हो, यह तो प्राणों की बलि-बेला,
फूले वह अशोक, हो जिसने झंझा के झोंकों को झेला,
ज्योतिरिंगणों से हम पूछें, कहाँ हमारा है ध्रुवतारा?
भारति, आज तिरंगे ने है तेरा बंदनवार सँवारा!
(7)
इस उदास पतझर में कोई मधु-वैभव का ध्यान करे क्या?
इति-भीति से पीत खेत जब, मेड़ों पर रस-गान करे क्या?
क्रांति शांति में बाधा देती, तो निष्क्रिय अभियान करे क्या?
स्वप्न छूटता नहीं पुराना, नवल सत्य निर्माण करे क्या?
यदि अकूल बहना ही जीवन, तिनके का भी व्यर्थ सहारा!
भारति, आज तिरंगे ने क्या तेरा बंदनवार सँवारा?
Original Image: IndianStub
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork