पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
- 1 January, 1954
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- 1 January, 1954
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
अश्रु नहीं, मकरंद भरा है
मेरे नलिन-नयन में कोमल
ओस नहीं, यह तो मोती है
दूर्वादल पर झलमल उज्ज्वल,
आह नहीं, यह सजल रंग है
मेरी इंद्रधनुष-चाहों का,
पीर नहीं, यह मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
खो कर सब विश्वास जगत् मेरा
लो, मुझसे दूर हो गया,
छलना का प्याला जो कर में
था वह क्षण में चूर हो गया,
मेरी आँखों का भ्रम-विभ्रम
स्वप्न समान विलीन हो गया,
जाग उठी अंतर्मानस में एक अखंड प्रतीति तुम्हारी!
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
नास्ति नहीं यह अस्ति, दिगंतों,
का यह व्यापक शून्य बोलता,
नहीं अव्याप्ति व्याप्ति यह वांछित,
कोई मुग्ध रहस्य खोलता,
नहीं अभाव, भाव यह
दीपशिखा-सा शाश्वत जल-जल उठता,
इस अखंड नीरवता में मुखरित है मंजुल गीति तुम्हारी!
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
तुम पीड़ाओं के माध्यम से
ही बरसातीं प्यार मनोहर,
तुम शूलों के माध्यम से ही
बिखरातीं मृदु फूल विहँस कर,
तुम अभिशापों के माध्यम से
ही देतीं वरदान अलक्षित,
ऐसी ही है नीति तुम्हारी, ऐसी ही है रीति तुम्हारी!
पीर नहीं यह मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी।
Image: A Dancer Accompanied by Musicians. India, Mughal, late 16th Century
Image Source: WikiArt
Image in Public Domain