फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं?
- 1 May, 1953
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- 1 May, 1953
फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं?
फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं?
मुस्कराते अधर दल पर
रख चुके जलती शिखा को
पर कभी चाहा न जग से
दे बुझा मादक तृषा को
बादलों में चाँद छिप-छिप
भर गया उन्माद कितना
वह उषा की एक रेखा
दे गई आह्लाद कितना
आँसुओं की धार में भी हम विहँसते जा रहे हैं ?
हैं क्षणिक सत्ता तुम्हारी
हम अडिग हैं, कब डरे हैं
ठीक है हर बार हारे
किंतु हम फिर भी लड़े हैं
धार मधु में डूबकर
अंगार का पाषाण बनते
शक्ति कितनी क्षीण होती
आप ही संघर्ष बनते
हार में कुछ खो चले फिर भी पुलकते जा रहे हैं।
फूल खा कर शत थपेड़े
तैरता देखा लहर में
मुस्कराती दामिनी
घन में समेटे आग उर में
धूल कण – कण हो गई
फिर भी सदा उड़ती रही है
रोज़ ऋतु पतझार लाती
पर कली खिलती रही है
मिट गए अरमान जो तूफान बनते जा रहे हैं!
Image: TWO MUSICIANS SEATED UNDER A FLOWERING TREE
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain