मेरे भीतर बारिश

मेरे भीतर बारिश

एक उम्र तक मुझे अफसोस रहा
कि मैं नहीं रच पाया कभी
सूखी धरती पर गिरती
बारिश से सुंदर कोई कविता
बरसात में बेतहाशा उगती
हरी घास सी गहरी कोई संवेदना
पत्तों से टपकती
बूँदों-सी कोई ताजगी
भींगते पेड़ों से बेहतर कोई प्रेमपत्र
बारिश में पंख फड़फड़ाते
पक्षी-सा कोई चित्र
बारिश के बाद
उमड़ती नदियों-सी कोई चंचलता
झरनों जैसी बेपरवाही

फिर एक दिन मैंने प्रेम को जाना
और मैंने देखा कि मैं
तब्दील हो रहा हूँ आहिस्ता-आहिस्ता
बारिश में घास में,
पत्तों में, पेड़ में, पक्षियों में
नदियों और झरनों में

उस दिन के बाद मैंने
कुछ भी रचने की कोशिश नहीं की
मेरे भीतर झरती हुई बारिश
तब से लगातार रच रही है मुझे!


Image : Spring. a Young Couple in a Rowing Boat on Odense Å
Image Source : WikiArt
Artist : Hans Andersen Brendekilde
Image in Public Domain

ध्रुव गुप्त द्वारा भी