प्राण, तुम्हारे मधुर बोल ही इन गीतों में फूट रहे हैं!

प्राण, तुम्हारे मधुर बोल ही इन गीतों में फूट रहे हैं!

प्राण, तुम्हारे मधुर बोल ही इन गीतों में फूट रहे हैं!
एक संग दो तार हिले थे,
प्राणों से संगीत झरा था;
मिलन-पर्व की मधुबेला में
मंद चरण माधव उतरा था;
कोना-कोना गूँज रहा है, तार भले ही टूट रहे हैं!
मुग्ध माधवी ने पुलकित हो,
हृदय लगा जी भर दुलराया;
फूलों की गलबाँह डाल दी,
साँसों में सौरभ सरसाया;
स्नेह-सूत्र में जकड़ चुके हम, अब न छुटाए छूट रहे हैं!
हृदय-समर्पण–स्नेह-दान ने
सहज जोड़ ली ममता-माया;
पर उसमें दुनिया ने देखी–
सदा अमंगल ही की छाया;
निर्मम जग के विष-प्याले भी मुझे सुधा के घूँट रहे हैं।
अरुण-किरण ने चूम कमल को
नव जीवन–उल्लास दिया है;
नयन चूम तुमने भी मुझको
अमर प्रेम विश्वास दिया है,
सदा कुसुम-कोमल-बंधन भी मेरे लिए अटूट रहे हैं।
दूर, अलक्षित भी रह तुमने
मन-प्राणों का प्यार दिया है,
अधि-व्याधि सर-आँखों लेकर
मुझ पर सब कुछ वार दिया है,
अंतर्नभ के शशि-दर्शन का क्या न नयन सुख लूट रहे हैं।
प्राण, तुम्हारे मधुर बोल ही इन गीतों में फूट रहे हैं।


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Artist: William Morris
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