प्रेम विवाह में प्रेम

प्रेम विवाह में प्रेम

लालता प्रसाद उर्फ लप्पू जी ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा। उनका आकर्षण हिंदी फिल्मों की तरफ बढ़ता गया–राजेश खन्ना, राजेंद्र कुमार, संजीव कुमार सबकी फिल्में एक जैसे ही चाव से देखते। हर हफ्ते फिल्म देख सकें इसके लिए वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे थे ताकि टिकट का खर्च निकाल सकें। उसके अलावा हीरो जैसे कपड़े और जूते का खर्च भी था और हीरो वाली चाल ढाल तो वे सीख ही चुके थे। मिडिल क्लास ब्राह्मण परिवार के इकलौते लड़के थे और चार बहनों के अकेले भाई जिनमें से तीन के ब्याह हो चुके थे पर मायके के आसपास ही रहती थी। शक्ल सूरत भगवान ने कोई माशाअल्लाह टाइप दी नहीं थी कि कोई लड़की इनको देखकर फिदा हो जाए पर इतने बुरे भी नहीं दिखते थे कि कोई घास भी न डाले।

फिल्मों में दिखाए जाने वाले प्रेम ने उनके मन में प्रेम को अलग ही स्थान दे दिया था। वे खुली आँखों से सच्चे प्रेम के सपने देखने लगे। वे तो मन ही मन ठान चुके थे कि वे प्रेम विवाह ही करेंगे। उन्हें लगता प्रेम के बिना जीवन नीरस है और प्रेम विवाह ही जीवन में रंग भर सकता है।

ये वो वक्त था जब प्रेम विवाह फिल्मों में ही होते दिखते थे या कुछ बड़े घरों में ही होते थे। दोस्तों ने काफी समझाने का प्रयास किया प्रेम विवाह के नुकसान बताए, समाज का परिवार का डर दिखाया पर हमारे हीरो पर तो लवमैरिज का भूत सवार था। वो बड़े अलग ही अंदाज में जवाब देते ‘अरे यार माँ बाप की मर्जी से किसी अनजान लड़की से शादी करके जीवन बिताना ज्यादा कठिन है और जिसे जानते तक नहीं उससे प्यार कैसे होगा? जिसके साथ जीवन बिताना है उसे पहले जान लेना चाहिए न? पहले प्यार हो फिर शादी हो तो जिंदगी खुशनुमा बीतेगी’ उनकी ऐसी फिल्मी बातें किसी की समझ में नहीं आती उनका मित्र कहता ‘यार ये प्रेम-वरेम सब फिल्मों में ही अच्छा लगता है। असली जिंदगी में जिम्मेदारियाँ होती हैं, परिवार की खुशियाँ होती हैं’ पर हमारे हीरो को आसान जिंदगी नहीं चैलेंज वाली फिल्मी जिंदगी चाहिए थी। उनका सपना तो अलग ही था कि वे शादी करें परिवार के लोग विरोध करें, लड़की के बाप की कनपटी पर बंदूक लगा कर लड़की को भगा लें। उनके इस सपने पर दोस्त मजाक बनाते–पागल है ससुरा दहेज के साथ-साथ जिंदगी का चैन भी दाव पर लगाएगा, इसको पता नहीं घर वाले कैसा जीना हराम कर देंगे। इसके घर वाले, बिना पसंद की लड़की को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। एक बोला–

‘सारा प्रेम का भूत उतर जाएगा जब पत्नी बनकर आएगी, जिसके लिए चाँद तारे तोड़कर लाने की बात करो उसे ही घर के जूठे बर्तन मँजवाओ ये न्याय की बात नहीं।’ बाकी दोस्त हँसते लप्पू जी कॉलेज में पढ़ते थे सो लगातार प्रेम कहानी शुरू करने की कोशिश जारी थी। पहले तीन साल तो सिर्फ टारगेट सेट करते रहे पर कोई भी लड़की ऐसी न मिली जिससे देखकर उन्हें फिल्मी हीरो हीरोइन जैसा प्रेम महसूस हुआ हो और जो उनके साथ भाग कर शादी को तैयार हो। कॉलेज का आखिरी साल था आखिरकार एक दिन एक दोस्त के साथ फिल्म का प्रोग्राम बना। वहाँ दोस्त की गर्लफ्रेंड अपनी एक सहेली के साथ आई। उन दिनों ऐसे ही बहाने से मिलते थे लोग छिप छिपाकर और दोस्त ही सबसे बड़े राजदार होते थे। अब दोस्त तो अपनी वाली को ले गया और रह गई सहेली और लप्पू महाराज…बड़ी-बड़ी आँखों वाली साँवली-सी उस लड़की को देखते ही हमारे हीरो के दिल की घंटी बजने लगी, पेट में तितलियाँ उड़ने लगी दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, कुल मिलकर वे सारे लक्षण प्रकट हो गए जिनसे प्रेम होना कनफर्म होता है। हमारे हीरो ने भी ये सुनहरा मौका तुरंत लपक लिया और मीठी-मीठी बातों के साथ दस बीस शायरियाँ सुनाकर सुधा नामक लड़की फटाफट बोतल में उतार ली गई। साल भर हाथ में हाथ डालकर घूमे, दर्जनों फिल्म देखी, शहर भर के पार्कों के रख-रखाव का निरीक्षण किया, अकेले रहने वाले दोस्तों के कमरों का शुद्धिकरण किया गया। चाँद तारे तोड़ने के वादे किए गए और साथ जियेंगे साथ मरेंगे टाइप बातें भी हुई। कुल मिलाकर इतनी मुहब्बत की गई कि लैला-मजनू और हीर-राँझा भी पीछे छूट गए। लड़की को खूबसूरत जिंदगी के इतने सपने दिखाए गए कि लड़की इनका सपना पूरा करने के लिए इन्हें पूरा सहयोग देने को तैयार हो गई। कॉलेज पूरा हो गया था अब इंतजार था नौकरी लगने का कई जगह आवेदन कर दिए गए और जिस दिन नौकरी का पत्र आया उसी दिन मंदिर में शादी का प्लान बना डाला। उस वक्त भी मित्र ने खूब समझाने का प्रयास किया और ये तक बता दिया कि ‘जिसके साथ मैं चार साल से घूम रहा था उसके साथ मैंने ऐसा कोई कमीटमेंट (वादा) नहीं किया और हम दोनों अपने माँ बाप की मर्जी से ही शादी करेंगे, तू साला एक साल में ही पगला गया है कम से कम लड़की के परिवार का तो पता कर लेता’ पर हीरो तो मानो इस वक्त स्टंटमैन बने थे हर चैलेंज से सामना करने को तैयार थे सो एक न सुना उलटा सुना डाला ‘देख भाई मैं तो कल सुबह शादी कर रहा हूँ, तू मेरा दोस्त है इसलिए बुलाया और बताया तुझे सही नहीं लगता तो मत आ। रही इसका घर बार देखने की बात, तो अब तो शादी करके ही देखूँगा। तू एक कट्टा दिला सकता है, तो दिला दे, यदि इसका बाप चू-चपड़ करेगा तो दिखाने के काम आएगा। रही मेरे घर वालों की तो इकलौता बेटा हूँ, आज नहीं तो कल मान ही जाएँगे और विरोध न हो तो लवमैरिज करने का फायदा ही क्या? जितना विरोध होता है प्रेम उतना ही मजबूत होता है।’ उसकी ऐसी दार्शनिक बातें सुनकर दोस्त चुप हो गया और करता भी क्या? दोस्ती का मतलब तो दोस्त का साथ देना है सो उसने भी दिया।

अगले दिन माँ की साड़ी और कुछ हल्के-फुल्के जेवर पायल इत्यादि (जो मौका देखकर माँ के बक्से से चुराये गए थे) लेकर हीरो पहुँच गया जिन्हें प्रेमिका जी ने फेरों से पहले धारण कर लिया। शादी करके एक फोटो खिंचवाई गई सबूत के लिए। उसके बाद दोनों सबसे पहले लड़की के घर पहुँचे। दरवाजा पिता ने ही खोला। पैर छूकर आशीर्वाद लिया और रौब से बोले ‘मैंने आपकी बेटी से शादी कर ली है।’ इन्हें लगा उसका बाप कुछ शोर-शराबा करेगा, फिल्मी स्टाइल से हल्ला गुल्ला विरोध होगा पर यहाँ तो ऐसा लगा मानो बाप भी यही चाहता था। उसने झट से माँ को बुलाया ‘अजी सुनती हो जल्दी से कुछ मीठा लेकर आओ–देखो अपनी सुधा ब्याह करके आई है’ और चीनी के पानी पिलाकर मुँह मीठा करने की रस्म पूरी की गई और कहीं से मूड़ा तुड़ा पाँच का नोट दामाद की हथेली पर धर कर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी। बेचारे हीरो जी को ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी। ये सब देखकर उनकी आँखें फटी रह गईं और दिमाग सुन्न हो गया उनके सारे सपनों पर पानी फिर गया था, अचानक कट्टा भी चुभने लगा और हथेली पर रखा नोट मुँह चिढ़ाने लगा। फिल्मी सपने से बाहर आए तब जाकर समझ आया कि प्रेमिका जी छोटी जाति की गरीब परिवार की लड़की हैं। उसके अलावा तीन बहनें और हैं। पिता दहेज देने में असमर्थ हैं सो बढ़ती उम्र की लड़की ब्याह गई, उनके लिए इतना ही काफी था। लड़की की जाति पता लगने पर हीरो जी का प्यार थोड़ा फुस्स हुआ, टाँगे काँपी और छुआ-छूत मानने वाली माँ की शक्ल आँखों के आगे तैर गई पर अब कोई रास्ता नहीं बचा था, घर तो जाना ही था। जैसे ही घर के दरवाजे पर कदम रखा वैसे ही घर में कोहराम मच गया, अपनी साड़ी में सजी लड़की को देख माँ, बहू का स्वागत भूल रोने-पीटने लगी, बहू के आने से ज्यादा दु:ख अपनी साड़ी की चोरी का था सो बेटे को खूब गालियाँ दी गई। हरामजादे ब्याह ही करना था तो मेरी माँ की दी हुई साड़ी क्यों चुराई?

छोटी बहन दौड़ कर बाकी बहनों को बुला लाई। एक ही भाई, न बारात सजी न फेरे हुए। ‘हे भगवान कितने सपने थे हमारे’–बहने रोने लगीं, ‘इकलौता बेटा और मन की बहू भी न ला पाई।’ माँ का रेडियो भी चालू था और लप्पू जी को लगातार धौल पड़ रही थी। चार बहन और इकलौती माँ ने उन्हें चारों तरफ से घेर रखा था और कोसने का गाली देने का कार्यक्रम जोर-शोर से निपटाया जा रहा था। अपना ऐसा जुलूस देख बेचारे हीरो परेशान हो सोच रहे थे…लवमैरिज के बाद ऐसा होता है? ससुरा ये तो किसी फिलम में नहीं दिखाया।

इन सबके बीच प्रेमिका रूपी पत्नी सुधा जी खुद गृह प्रवेश करके एक कोने में विराजमान हो गई। कुछ घंटों पिता आए तो, सबको समझाने का प्रयास किया, तब जाकर सब शांत हुई पर बहू को स्वीकार किया हो ऐसे कोई लक्षण प्रकट नहीं हुए। एक दो दिन में थोड़ी शांति हुई तो पिता ने रिश्तेदारों को एक दावत देने की सोची। ‘बेटे ने ब्याह तो कर लिया, कम से कम रिश्तेदारों को तो बुलाना ही है, सबके यहाँ जाते हैं और सबको पता भी लग जाएगा बेटा ब्याह गया है। एक हफ्ते बाद पास की धर्मशाला में दावत का इंतजाम किया गया। लड़की के मायके वालों को भी बुलाया गया। दावत यानी रिसेप्शन वाले दिन हुआ असली धमाका जिसने दोनों प्रेमी जोड़ों की रही-सही नैया भी डुबो दी। जब लप्पू महाराज के माता-पिता और सुधा के माता-पिता मिले और बातों का आदान-प्रदान हुआ। उस रात ऐसा हंगामा हुआ कि लप्पू महाराज का प्रेम का भूत भी दिल दिमाग से उतर कर तड़पने लगा। नसपीटे ने हमारा धर्म भ्रष्ट कर डाला, ‘हरामजादे तुझे और कोई न मिली इसके अलावा’ माँ चिल्ला रही थी… ‘हे भगवान हमारे सासरे में क्या इज्जत रह जाएगी हमारी और सारे रिश्तेदार हमसे दूर भागेंगे कोई पानी भी नहीं पिएगा इस घर का।’ सारी बहनें माँ के सुर में सुर मिल कर आलाप दे रही थी। सारी रात हंगामा हुआ। पिता ने लाख समझाया पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं थी। अगले दिन ही बहू को घर के पीछे बने कमरे में शिफ्ट कर दिया गया और फरमान सुना दिया गया कि ये रसोई में नहीं घुसेगी घर का कोई सामान नहीं छूएगी आदि-आदि।

बेचारी बहू के पास भी सब सहने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, हाँ ये बात और है कि नई बहू से सारे घर का झाड़ू-पोछा, कपड़े धोना और बाकी काम खूब करवाए जाते बस खाना नहीं बनवाया जाता। देर सवेर आधा पेट बचा-कूचा खाना पटक दिया जाता। एक आध बार हिम्मत कर के लप्पू जी ने माँ को समझाना चाहा, इस अत्याचार का विरोध दर्शाने का प्रयास भी किया तब तो और ज्यादा हंगामा हो गया। माँ और बहनें छाती पीटकर रोने लगी, बाकायदा बेटे के जन्म को कोसा गया और सुधा को जादूगरनी और चुड़ैल टाइप नाम दिए गए, जिसने उनके बेटे को अपने वश में कर लिया था क्योंकि बेटे के पास तो दिमाग था ही नहीं, मासूम था बेचारा। उसके बाद लप्पू जी ने हालात से समझौता कर लिया और सुधा को भी यही समझाया। बेचारी सुधा रोती पर बोलती कुछ नहीं। जिस पति ने इतने सपने दिखाए अब वो भी उसकी मदद नहीं कर पा रहा था। वे सिर्फ रात को बिस्तर पर अपनी जरूरत पूरी करते और पैर पसार कर सो जाते।

कुछ समय बाद लप्पू महाराज ने घर से अलग जाने की हिम्मत जुटाई और पिता को बोले–‘बाबूजी माँ और बाकी लोगों ने सुधा का जीना हराम कर रखा है, सब परेशान हैं, ऐसा जीवन जीने से बेहतर तो हम अलग हो जाते हैं।’

पिता उदास होकर बोले–‘बेटा तुम इकलौते बेटे हो हमारे, जबसे पैदा हुए तुम्हारी माँ का एक ही सपना था कि तुम्हें दूल्हा बने देखे और अपने हाथ से दुल्हन को घर लाए जो बुरी तरह टूट गया। वो अंदर से बहुत दुखी है, उसकी वजह से गुस्सा हो रही है और सुधा को अपना दुश्मन समझ रही है। सुधा को झेलना पड़ रहा है पर तुम अगर कहीं चले गए तो वो और टूट जाएगी। माँ की तकलीफ को समझो कुछ समय में सब ठीक हो जाएगा। चिंता मत करो, तुम बहू को समझाओ बस कुछ समय झेल ले, बाल बच्चा होते ही सब बदल जाएगा’।

पिता की बात सुनकर उसे भी अपनी गलती का अहसास हुआ अपने ही सपने की सोची किसी और की सोच ही नहीं पाया। अब वह माँ को खुश करने का प्रयास करता उनके साथ वक्त बिताता।

कुछ समय में एक पुत्र का आगमन हुआ जिससे दादी बुआ खूब प्यार करती, घर का माहौल कुछ ठीक हुआ पर सुधा के कष्ट कम नहीं हुए बात-बात पर ताने मिलते बल्कि अब तो लप्पू जी भी माँ के कान भरने पर पत्नी के साथ मारपीट और गाली-गलौज तक शुरू हो गए थे। पत्नी कोई जवाब नहीं देती पर अंदर ही अंदर मानो ज्वालामुखी धधक रहा था जो कभी भी फटने के इंतजार में था। फिलहाल उसके पास सहने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। इस प्रेम विवाह में सिर्फ दोनों के बीच सिर्फ शादी बची थी प्रेम का नामोनिशान भी मिट चुका था। उस बची हुई शादी ने उन दोनों पिछले जमाने के लैला मजनू को चार बच्चों का माँ बाप तो बना दिया पर उसके बाद वे सिर्फ माँ बाप ही रह गए थे पत्नी ने खुद को बच्चों और घर में व्यस्त कर लिया। अब तक लप्पू महाराज का प्रेम का भूत प्रेम की कमी से तड़पने लगा था, सो बाहर नये प्रेम की सिर्फ तलाश शुरू नहीं हुई बाकायदा नित नई प्रेम कहानियाँ बनने लगी थी यानी अब जरूरतें बाहर पूरी होने लगी थी।

बीतते समय के साथ बच्चे बड़े हो गए। लप्पू ने अलग घर भी खरीद लिया था और अपने परिवार के साथ वहाँ शिफ्ट हो गए। उस वक्त माँ वहाँ जाने को तैयार नहीं हुई। बहन ससुराल चली गई और पिता दुनिया छोड़ कर चले गए और पत्नी ने माँ बहनों सहित लप्पू महाराज से भी बोलना बंद कर दिया था और हर रिश्ते से दूरी बना ली। सुधा कभी सामने बोली नहीं पर उसकी चुप्पी लप्पू महाराज को तकलीफ देती और उसकी जिन आँखों को देखकर प्रेम में डूबे थे वे हरवक्त आग उगलती महसूस होती। माँ तो अकेली रहने लगी थी। चाहकर भी अपने साथ नहीं रख सकता था और पत्नी ने अपने घर में सास और ननदों की एंट्री पर बैन लगा दिया। अब सास ननद सबको बुरा लगता, ये हमारी इज्जत नहीं करती, हमारे लप्पू को खाना तक नहीं देती, न ही उसके कपड़े आदि धोती है…पर सुधा के सामने बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी। लप्पू पूरी कोशिश करता माँ बहनों को खुश रखने की, उन पर खर्च भी खूब करता, उनके पास भी जाता पर जितनी देर वहाँ रहता, सुधा को ही कोसती रहती और लप्पू को भी अहसास करवाती कि उसने उनके साथ कितना बुरा किया ये प्रेम विवाह करके। पत्नी ने तो ऐसी हालात कर दी मानो उससे घटिया इनसान कोई है ही नहीं। वो बोलती कुछ नहीं थी पर उसके हाव-भाव से महसूस हो जाता कि लप्पू के लिए उसके दिल में कोई स्थान नहीं, बच्चों की वजह से टिकी हुई है बस। घर के राशन से लेकर सारे खर्चे करते पर लप्पू की स्थिति बेचारों वाली थी, घर में हालात कुत्ते से भी बदतर थी, जिसे कोई टुकड़ा भी नहीं डालता।

घर पर कोई उससे बात नहीं करता। सुबह खुद चाय बनाकर ब्रेड के साथ सुड़क कर ऑफिस निकल जाते और दोपहर का भोजन ऑफिस कैंटीन में करते, रात को बेशर्म बनकर घर में बनी दाल रोटी ठूँस लेते और ऐसा शानदार भोजन पाकर वे अपने को धन्य समझते और बाहर किसी साथी की तलाश में भटकते। अपने हर दु:ख का जिम्मेदार उन्हें ही मानती पत्नी आज उनसे इतनी नफरत करने लगी है कि उन्हें जानी दुश्मन की तरह ही देखती, जान-बूझ कर ऐसे-ऐसे काम करती कि मिस्टर पतिदेव अंदर ही अंदर कुढ़ कर रह जाते। जैसे उन्हें मिर्च पसंद नहीं तो रात के खाने में तेज मिर्च डालती, यदि वे मशीन में अपने कपड़े डाल देते तो हटाकर अलग रख देती, वे अपने नाश्ते के लिए फल या ब्रेड लाते तो उसे चट कर जाती। लप्पू चिल्लाते तो बच्चों को दिखाती देखो तुम्हारा बाप कैसा है। बच्चों को पिता के खिलाफ खड़ा कर चुकी थी। अब सिर्फ वे उनके लिए ए टीएम बनकर रह गए थे जिसका काम सिर्फ रुपये देना था।

अब लप्पू जी कुछ भी बोलने का प्रयास करते तो बच्चे माँ के साथ खड़े हो जाते और बेचारे मन मसोस कर रह जाते, उन्हें अब उस कहावत पर यकीन हो चुका था इतिहास खुद को दोहराता है।

बेचारे लप्पू महाराज जी तो दोस्तों से भी दुखड़े नहीं रो सकते थे जैसे ही दोस्तों से कुछ कहते–‘यार क्या हुआ प्रेम विवाह का तू तो चाँद तारों की डोली पर सवार था अब प्रेम बचा न विवाह।’ सब हँसते ‘बेटे क्या हुआ प्रेम का जिसकी बाँहों में सारी जिंदगी बितानी थी उसका साथ भी न दे पाया, समझाया था न प्रेम का मतलब काँटों पर चलना है पर तू न समझा’ दोस्त बोलते भाभी कुछ भी गलत नहीं कर रही, तूने उनका कभी साथ नहीं दिया उल्टा तकलीफ में अकेला छोड़ दिया अब जो बोया है वही काटेगा न? ये सब सुनकर बेचारे लप्पू महाराज अंदर ही अंदर खुद को कोसते और दुखी होते और गिलास में डुबो कर या किसी महिला की बाँहों में अपने गम को गलत करते और बोलते ‘मैं सुधा से बहुत प्यार करता हूँ यदि वो मुझे प्यार करती तो मुझ जैसा शरीफ आदमी किसी औरत की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखता, बस एक ऐसी प्रेमिका मिल जाए जिसके साथ बुढ़ापा कट सके’।

प्रेम विवाह के दर्द के मारे बेचारे आजकल सारी दुनिया को समझाते फिरते हैं कि प्रेम भले ही कर लेना पर प्रेम विवाह भूल कर भी मत करना, साला न प्रेम बचता है न ही विवाह। जिंदगी नरक हो जाती है, आदि आदि। फिलहाल वे खुद सच्चे प्रेम की तलाश में नित नए रास्ते पर भटक रहे हैं जो उनका ख्याल रखे उनका अकेलापन दूर कर दे। आप में से किसी को एक अदद प्रेमिका मिले तो लप्पू बाबू तक जरूर पहुँचा दीजिएगा जिससे उनका बुढ़ापा आराम से कट सके।


Image: Delhi National Museum Ragini Maru of Sri Raga 20131006
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