प्यार के सपने
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- 1 August, 1953
प्यार के सपने
बड़े महँगे पड़े इस ज़िंदगी को प्यार के सपने।
बड़ी उम्मीद पर मैंने कदम अंगार पर डाले,
बड़ी उम्मीद पर मैं पी गया हँस कर ज़हर-प्याले,
दिशाएँ मोड़ लूँगा, मैं नयी दुनिया बना लूँगा,
बड़ी बेरहमियों के बीच मैंने नेह हैं पाले,
मगर, इस ज़िंदगी की छाँह में, वैसी तपिश पाई,
कलेजा ही नहीं, अब तो लगे हैं प्राण तक जलने।
कुहासा ही कुहासा है, न कोई पंथ मिलता है
कहाँ जाऊँ, किधर जाऊँ न कुछ संकेत मिलता है,
महा तम हो, तो अंर्तज्योति की कोई किरण पाऊँ,
मगर इस नीम तम का तो न कोई अंत मिलता है।
ये किस आवाज़ पर मैं बढ़ रहा हूँ आग-पानी में,
कि खोया-सा समझ अपने लगे हैं हाथ तक मलने।
मना है काफिले को साथियों की खोज में रुकना,
मना है काफिले को हर जगह आराम रुक करना,
अकेला ज़िंदगी की राह पर दिन-रात चलना है,
मना है, प्राण की भी बात मन की साँस से कहना।
मगर मैं राज़ को भी रख न पाया हाय! अपने में,
नतीजा है कि बाहर और भीतर हैं लगे तपने।
खुशी है, एक लंबी-सी कहानी खत्म होती है,
किसी के प्राण की जलती निशानी खत्म होती है
हवा! तुमको मुबारक़ हो तुम्हारे मस्त ये झोंके,
कि जिस से ज़िंदगी की लौ लहक कर खत्म होती है।
अजिब-सी कशमकश में ज़िंदगी के दिन बिताने हैं,
समझता हूँ, मगर नाहक लगी हैं आँख ये भरने।
बड़े महँगे पड़े इस ज़िंदगी को प्यार के सपने।
Original Image: The Tree of Crows
Image Source: WikiArt
Artist: Caspar David Friedrich
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork