रात
- 1 May, 1953
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- 1 May, 1953
रात
रात, जिसका चाँद मेरी नींद बन कर खो गया है,
क्या न जाने हो गया है?
इन सितारों को हुई मुझसे जलन क्या,
इस सड़क पर जल रहें ये दीप बिजली के,
हुई इनको कसक क्या!
क्या कहीं कोई मुझे भी याद कर जागे हुए है,
आँख का काजल बना कर पलक में साधे हुए है,
कौन मेरी नींद मेरा सप्न लेकर सो गया है,
क्या न जाने हो गया है!
आसमां से रात का काला धुँवा-सा गिर रहा है,
नींद की इस मौत में से, मौन का शव जी रहा है,
किंतु फिर भी मौन की चादर नहीं साबुत बची है,
दूर भययुद निशिचरों के स्वर उठे से आ रहे हैं,
कुछ न होनी बात के यों ताव बढ़ते जा रहे हैं,
इक सितारा-सा अभी टूटा, अभी दीखा मुझे था,
क्या सितारों का जमीं में बीज-सा बोया गया है?
मैं महज करवट बदल लूँ, आह भर-भर रात काहू
इन सितारों को पूकारूँ, यू न बरबादी कहीं हूँ
प्यार तो सबसे मुझे है, कौन जो मेरा नहीं है,
मैं मगर बंध जाऊँ ऐसे प्यार का आदी नहीं हूँ।
किंतु इससे हो नहीं मुश्किल गई आसान मेरी,
देख कर मुझको अकेला रात होती जा रही है
खूब गहरी, खूब गहरी।
चाँद का नन्हाँ तिलक भी इस निशा के भाल पर से
कौन जाने धो गया है।
क्या न जाने हो गया है।
रात जिसका चाँद मेरी नींद बन कर खो गया है,
क्या न जाने हो गया है।
Image: Mekheski Moon People
Image Source: WikiArt
Artist: Nicholas Roerich
Image in Public Domain