सब कहते हैं-गीत सुनाओ
- 1 November, 1951
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/sab-kahate-hain-geet-sunao/
- 1 November, 1951
सब कहते हैं-गीत सुनाओ
सब कहते हैं–गीत सुनाओ!
मन को थोड़ा बहलाओ!
यह न पूछता कोई तुमको
क्या पीड़ा है बतलाओ?
जीवन की इस मधुशाला में
मधु, मधुघट, मधुबाला है
कहते हैं सब, ‘हमें पिलाओ!’;
कौन कहे कि ‘पियो, आओ!’
इस धड़कन में दर्द लिए मैं
खोज रहा उपचार यहाँ।
जो मिलता है कहता–मेरी
पीड़ाओं को सहलाओ!
स्नेह चाहता है जग मुझसे
लौ जिससे यह जलता है,
अंतिम बूँद चुकाकर चाहे
ज्योति न पल भर जल पाओ!
पथ लंबा, दुर्गम, अनजाना–
एकाकी ही बढ़ा चलूँ?
कहता कोई नहीं, ‘थके हो,–
पलभर यहीं ठहर जाओ!’
कोई मेरे भग्न हृदय की
भाषा लेश न पढ़ पाया!
कह देते सब ‘हँसो, मुस्कराओ
रोओ मत, कुछ गाओ!’
चाह रहे सब–उनके आगे
अपने प्राण लुटा दूँ मैं!
मैं न कहूँ पर उनसे–‘मुझको
अपना अपनापन लाओ!’
Image: Violinist in a Boat
Image Source: WikiArt
Artist: Arthur Verona
Image in Public Domain