सम्मान और अपमान एक मुर्दे को

सम्मान और अपमान एक मुर्दे को

सम्मान और अपमान एक मुर्दे को।
चाहे उस पर कंकड़-पत्थर बरसाओ,
चाहे मोती कुकुंम या फूल लुटाओ
मुर्दे की मुड़ी उँगलियाँ फैल न पातीं,
कालिमा जहर की बोलो कब मुस्कातीं,
मुझ पर कंकड़ कुकुंम बरसाने वालो,
है घृणा और मुस्कान एक मुर्दे को।

चाहे मेरी कमजोरी पर मुस्काओ,
चाहे मेरी मजबूरी पर भर आओ,
मुर्दे की छाती पर बिजली सो जाती,
जलधारा से कब चट्टानें हरियाती,
मुझ पर भर आने, औ मुस्काने वालो,
है व्यंग और जलदान एक मुर्दे को।

जिसने अंधियारी में खोली हो आँखें,
अंधियारी में ही बंद हुई हो पाँखें,
संबल न सके दे जिसको दीप गगन के,
उस तम पंथी को क्या दो दीप नयन के;
काली रातों में दीप जलाने वालो
है मावस और विहान एक मुर्दे को।

चाहे मुझको नयनों का शूल बताओ,
चाहे मुझको सपनों का फूल बताओ
मरने पर चाहे तारों संग बिठलाना,
जीवन भर तो तुमने न मुझे पहचाना;
सुनलो मेरे सब जानो औ अनजानो,
है मंदिर और मसान एक मुर्दे को।


Image: Lake with Dead Trees (Catskill)
Image Source: WikiArt
Artist: Thomas Cole
Image in Public Domain

गिरिधर गोपाल द्वारा भी