संजीवनी

संजीवनी

कभी भी
याद आ जाती है
रात भर जागती लालटेन
किसी छुट्टी वाले दिन
घर को सलीके से सँवारते वक्त
मुलाकात हो जाती है अनायास ही
उससे किसी टांड पर
बस फिर क्या, मैं और वो
घंटों बतियाते हैं एक-दूसरे से
चैत-बैसाख की सुबहें
जेठ की गर्म दोपहरियों की यादें
अषाढ़ की पहली बारिश में भीगी शामें
और अगहन-पूस की सर्द रातें
हिस्सा बन जाती हैं हमारी स्मृति का

जाने क्या हो जाता है मुझे
भूल जाती हूँ मैं घर को सँवारना
बैठ जाती हूँ उसके साथ
बतियाती रहती हूँ शाम तक
और फिर…
झाड़-पोंछ कर
चिमनी साफ कर जला देती हूँ
कर देती हूँ आँगन में अँधेरा
पूरा आँगन
नहा उठता है उसकी रौशनी में
एक पुरानी खुशबू
घूमती-फिरती है पूरे घर में
स्मृतियों की संजीवनी से तरोताजा हुई मैं
अगली सुबह
उसे फिर रख देती हूँ उसे टांड़ पर
भाग-दौड़ की जिन्दगी में
कई-कई दिनों तक
रह-रह कर पीछा करती रहती है
एक पुरानी खुशबू।


Original Image: The Table Garden
Image Source: WikiArt
Artist: Childe Hassam
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork