सूखते जल-गीत

सूखते जल-गीत

बैठी है चिड़ियाएँ
नदी के मुहाने पर।

सूखते जल-गीत जैसे
टूट जाते धूप के गहने
डूबकर ही नहाती है
रात मकर उजास पहने

दूब कनखियाए
ऋतु के बहाने पर।

हवा ने माँग सावन से
चमक चाँदनी की हँसुली
कौंध गई है माथे पर
बिजली की चमचम टिकली

भरी थाप खूशबू ने
इमन गुनगुनाने पर।

अगहनी हवा बहते ही
गूँजते हैं नाद रथ के
रच देते हैं पेड़ हरे
शुभाशीष इस पथ के।

एक गूँज बची हुई
समय के तराने पर।


Original Image: The pond with a herons
Image Source: WikiArt
Artist: Charles Francois Daubigny
Image in Public Domain
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