तारों को जागते देखा है
- 1 November, 1951
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- 1 November, 1951
तारों को जागते देखा है
हमने अपने मृदु सपनों को, अंबर में उगते देखा है
भर-रात जगत के सिर्हाने, तारों को जगते देखा है
भादो की काली रातों में, जिनके घर का बुझ गया दिया
उनके नयनों को प्रात: तक, तारों पर लगते देखा है
रवि जहाँ सुबह मुस्काता है, होता फिर संध्या को ओझल
उस जगह नील नभ को हमने, धरती पर झुकते देखा है
जब लाल हुआ नभ दुनिया ने कह दिया भोर है संध्या है
पर चतुर चितेरे को हमने नभ-जल-थल रँगते देखा है
जब चाँद खिला उस पार चला, नभ में न रुका, जग पर न झुका
हमने उसको अपनी छवि पर, जल-तल में रुकते देखा है
जब कभी अँधेरी रात हुई, साथी न मिले, राहें न मिलीं
हमने आशा को अंबर में, चुपचाप चमकते देखा है
Image: Star of the Hero
Image Source: WikiArt
Artist: Nicholas Roerich
Image in Public Domain