तस्वीर

तस्वीर

जब मैं देखता हूँ
अपने पूर्वजों की
टँगी हुई तस्वीरें,
तो मन में बातें दृढ़ता दर्द भरी
उभर आती है कि
मैं भी तो टंग जाऊँगा
इनके साथ ही
एक दिन,

रेत में पतझड़
फिर रेत का तूफान
सन सनाता
भीतर समा गहरा जाता है
और शून्य होते मन के फैलाव से
उठती तरंगें
तट पर दूर-दूर तक जा
लौटती रहती है
और फिर अनजाने
शांत हो जाती है
पहाड़ी के खोए प्रांतर की
संध्या हो,
और फिर रात गुजर जाती है
कुछ ही पल तो लगता है
गुजरने में,
सूरज झाँकने लगता है
चिड़ियाँ पंख पसार लेती हैं,
और दुनिया
अपनी रफ्तार ले लेती हैं,
हट जाती है
अँधेरे की बात,

न दिखती है तब कहीं
कोई टँगी तस्वीरें
और कालजयी होते मन में
न उभरती है
अपनी भी तस्वीर
यहाँ टँगेगी की बात में।


Original Image: Interior with a green tiled stove
Image Source: WikiArt
Artist: Ludwig Knaus
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork