तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

नीलम-नील महल के ऊपर
मणि दीपों की माला!
गया असर कर क्या तुझ पर भी
वैभव का उजियाला!

अंतर आभा वाले तेरी
कद्र वहाँ पर क्या है!
नीचे का पानी अंदर रस, रस में अमृत धारे!
तेरे मन का मोल ओस कण समझेंगे, न कि तारे!

उच्चासन आसीन भले ही
तुझे दुआएँ दे लें,
गो ज़्यादा संभव है तेरी
किस्मत से वे खेलें,

ताज पिन्हादे तो भी होगा
ठुकराई किरणों का,
जल की बूँद प्रतीक्षा में है, तेरे पाँव पखारे!
तेरे मन का मान ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

जड़ता के उस चाकचक्य प्रर
आँख सभी की जाती
किंतु किसी ने उसके पीछे
सुनी धड़कती छाती?

यह पानी की बूँद पंखुरियों
की आहों पर हिलती,
यह अपनी पुतली में सारे नभ का दर्द सँवारे!
तेरे मन का भार ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

चमक-दमक की तड़क-भड़क को
समझ न अंतर्ज्वाला,
नहीं हुआ करता हर जलने
वाला गलने वाला!

गले-ढले ही जले हुओं की
पीर परख पाते हैं,
इन जल तन वालों ने जाने हैं मन के अंगारे!
तेरे मन का ताप ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

आदिकाल से पृथ्वी का दुख
दाप उन्होंने देखा,
किंतु नहीं उनके आनन पर
पड़ी एक भी रेखा,

इन बूँदों पर एक-एक क्षण
कण की कसक सिसकती,
व्यथा-कथा संसृति की छूते इनके कोर-किनारे!
तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!


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