ठाकुरोपनिषद्
- 1 April, 1964
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- 1 April, 1964
ठाकुरोपनिषद्
तुम्हारे नयन-रथ में ही
सूर्य
सवार हो कर भ्रमण करेंगे :
जगत-पहिया खोजने के लिए ।
आज
अश्रु-सारथी सूर्य की दाह में स्वविक्षोभ की वजह से
श्वेत रंग करके परिहार
करेगा
मरण-वरण ।
जीवन
प्राप्त करेगा परोपकार-प्रसव यौवन ।
द्वंद्व से
दामिनी का उर्वर उल्लास आज गिर पड़ेगा ।
और मैं होऊँगा एक के लिए : एकादशी ।
सूर्य की पिपासा
गर्भ गुहा के अंदर ही जागृत हुई थी । अंजुलि भर-भर
कर किया था पान
हास्य रोदन ।
तुम्हारे नयन-रथ गति प्राप्तेंगे…निजी पूर्ण मनोरथ ।
Image: In the Style of Kairouan
Image Source: WikiArt
Artist: Paul Klee
Image in Public Domain