ठग पिंडारी

ठग पिंडारी

अभी घमासान और
अभी बियाबान है
मन है? मैदान है?
मन है, मैदान है।
पुलकित आसमान है
संतन की भई भीर
हरो जन की पीर
जन की पीर
‘ओ बेपीर पीर, मैं हारी
जाने दे, मैं हूँ अधमारी।’
भर बाजार अदालत सारी
चाट रहे हैं ठग-पिंडारी!


Image: A Apanha do sargaço
Image Source: WikiArt
Artist: António de Carvalho da Silva Porto
Image in Public Domain