तू
- 1 June, 1953
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- 1 June, 1953
तू
चुक गया रस ? झूठ; तू रीता नहीं है!
मधु-मधुर है; विरस या तीता नहीं है!!
लोग कहते हैं, कहें; पर क्या कहेंगे?
डूबने वाले कभी तिनके गहेंगे?
थाहना है चाहता तू तो अतलता,
सतह पर तिरते हुए थक कर बहेंगे!
मृत्यु की गहराइयों में से निकलना,
आँधियों में दीप का क्या सरल बलना?
शुष्क इंधन को जलाती आग है जो
है न उसका काम जल के बीच जलना!
वे दिखा सकते विहस–काँटों भरा तू,
वे सिखा सकते हुलस–जीवित मरा तू,
भेद यह भी पर तुझे मालूम है क्या–
चिर-किशोर विकच, नहीं कुंचित जरा तू।
जीर्ण पट को फाड़ कर सीता नहीं!
तू सहज जीवन, महज जीता नहीं है!!
फड़फड़ाए पंख, लो, चिड़िया उड़ी वह,
इधर क्या लोगों, उधर, देखो, मुड़ी वह,
छान लो आकाश–सारी शून्यता को,
थी अकेली, झुंड से पर अब जुड़ी वह!
एक चिड़िया की उड़ान परख न पाते,
पंख की फड़कन जिधर, चख रख न पाते,
चाहते हैं झुंड में उसको निरखना,
झुंड की समवेत सत्ता लख न पाते।
लोग वे जो कुछ कहेंगे, तू सुनेगा?
मुखर जड़ पर मौन चेतन सिर धुनेगा?
व्यर्थ की बौछार है; झड़ियाँ लगी हैं,
तू रुकेगा और ये कण-कण चुनेगा?
तृप्त है तू, विंदु ये पीता नहीं है!
विंदुओं पर तू अरे, जीता नहीं है!!
और हैं वे, जो अलग तुझसे खड़े हैं,
कब्र में निज के विचारों की गड़े हैं!
चुप अतलता में उतर या शिखर पर चढ़,
तू न गिन–कितने यहाँ छोटे-बड़े हैं।
संतुलन होता नहीं ऐसे कहीं है,
उच्च वह आकाश, यह नीची मही है!
कल्पना मस्तिष्क की, अनुभूति मन की,
–झूठ है यह सब, महज बकवास ही है!
एकता नानात्व में ही सत्य-दर्शन,
एक में नानात्व बौद्धिक लोम-हर्षण!
‘नास्ति’ हैं वे, ‘अस्ति’ से टकरा रहे हैं,
चमक तेजस्वी फलक, यह शाण-घर्षण!
तू स्वयं है ज्ञान, कुछ गीता नहीं है!
आज मरता और कल जीता नहीं है!!
तू यहाँ है, तू वहाँ, तू सब कहीं है,
तू न हो, ऐसी जगह कोई नहीं है,
यह निरा दर्शन नहीं, अपरोक्ष अनुभव,
तू स्वयं आकाश है, तू ही नहीं है,
जो किए तेरे न होगा, वह न होगा,
और, जो हो मिलन और विरह न होगा,
यह सतत संघर्ष, यह संधान अविरत,
क्षितिज का सामीप्य यह दु:सह न होगा!
तू जिधर से जाएगा वह राह होगी,
चाहता जो तू, सही वह चाह होगी,
मानदंड यही, विकल्प-विकार औ’ सब,
तू जहाँ थम जाएगा; वह थाह होगी!
रस सिरजता है, विकल पीता नहीं है!
दे रहा जीवन, महज जीता नहीं है!!
Image: Listening to the Qin
Image Source: WikiArt
Artist: Emperor Huizong
Image in Public Domain