वजूद

वजूद

इस आकाशगंगा में
लाखों सूर्य हैं
और अरबों तारे
सब जुदा-जुदा और न्यारे-न्यारे
जमाना-सिर्फ
सूर्य हो जाना चाहता है
और मैं-सिर्फ चाँद
क्योंकि चाँद में है नूतनता
है अलभ्य शीतलता
वो रोज घटता है और
गायब हो जाता है पूरा का पूरा
फिर एक घोर अंधकार?
अमावस नहीं है…अँधेरे का प्रतीक
यह निशा है तारों की
उन सितारों की
जिनका कोई अपना
आसमान नहीं होता
यह ब्लैकआउट है…
सभी विचारों का
जो रोक रहे थे प्रेम का प्रसार
और चाँद शुरू होता है बढ़ना
फिर दूज का चाँद
ईद का चाँद
चौदहवीं का चाँद
फिर पूर्णता का उद्घोष
और दोहराते जाना उसी क्रम को
समुद्र की लहरें तभी तो
करती है मित्रता चंद्रकलाओं से
और करती है क्रीड़ा
आता है भावनाओं में
कभी ज्वार तो कभी भाटा
जैसे प्रेम में…शाश्वत
ऐसा नहीं कि मुझे पसंद है अँधेरा
किंतु मुझे पसंद नहीं है…वो…धूप भी
जो कर देती है धरती को बंजर
जो दे नहीं सकती
किसी मुँह को निवाला
मेरा वजूद है चाँद हो जाना…
और तपते दिन को सुकून दे जाना
सूरज की तरह…
पूर्णता में मत तलाशना
जब कहीं तनहाई घेरे
मुझे चाँद समझकर पुकार लेना।


Image: Landscape with Stars
Image Source: WikiArt
Artist: Henri Edmond Cross
Image in Public Domain