विश्व मेरे, बह रही है काल-धारा
- 1 January, 1952
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- 1 January, 1952
विश्व मेरे, बह रही है काल-धारा
विश्व मेरे, बह रही है काल-धारा
अनवरत, जिसका नहीं कोई किनारा,
तोड़ती पथ के सभी तृण-लता-पादप–
पर्वतों के, नाश जिसका मंत्र प्यारा
गूँजता भू पर, दिगंतों बीच; सुनकर
डर रहे हम, बह रहे बेबस लहर पर
क्षुद्र तिनकों-से! निपट अनजान मानव
पर न अब बन कर रहेंगे। हम अनश्वर–
शक्ति के हैं केंद्र, जीवन के प्रणेता!
क्षुद्र तिनके काल-धारा के विजेता
अब बनेंगे; एक एक नहीं, सहस-शत
एक होकर। आत्म मुक्त समष्टि-चेता
व्यष्टि होगा, काल के रथ पर चढ़ेगा!
प्राणवंत नई दिशाओं में बढ़ेगा!
Image: A-Waterfall
Image Source: WikiArt
Artist: John-Singer-Sargent
Image in Public Domain