विश्व मेरे, यह नया मेरा सबेरा!

विश्व मेरे, यह नया मेरा सबेरा!

विश्व मेरे, यह नया मेरा सबेरा!
मिट गया मानस क्षितिज का क्षीण घेरा!
ज्योति की परियाँ धरा पर मौन उतरीं;
ओस के आँसू मिटे, खोया अँधेरा!
यह नए दिन की उषा मुसका रही है!
इंद्रधनुषी छवि धरा पर छा रही है!
शून्य में उड़ कर गए थक पंख जिसके
कल्पना अब भूमि पर लहरा रही है!
चल पड़े नूतन डगर पर ये चरण हैं,
और पदतल में झुके जीवन मरण हैं!
सिंधु में हरियालियों के तैरते-से
स्वप्न कल के देखते मेरे नयन हैं!
भूमि पर उर्वर उगी कविता नई है,
संधि-बेला में बनी जो रसमयी है!


Image: Walk in the woods
Image Source: WikiArt
Artist: Hugo Muhlig
Image in Public Domain