विश्वराज्य
- 1 April, 1951
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- 1 April, 1951
विश्वराज्य
जगती, तेरे सभी हम, जननी, तेरी जय है;
विश्वराज्य के लोकतंत्र में किसको किसका भय है?
विविध वर्ण-मैत्री के द्वारा
मुखरित मानस-चित्र हमारा।
पाकर प्रेम धर्म की धारा
मानव सृष्टि सदय है।
जननी, तेरी जय है॥
हैं व्यक्तित्व स्वतंत्र हमारे,
पर समष्टिमय मंत्र हमारे।
हुए हृदय युत यंत्र हमारे,
साधित सर्वोदय है।
जननी, तेरी जय है॥
जो थे देश, प्रदेश मात्र हैं,
तेरे आज अभिन्न गात्र हैं।
विश्व-सभा के सभी पात्र हैं,
सबके लिए समय है।
जननी, तेरी जय है॥
गई विवशता की वह व्रीड़ा,
रोष भरी शोषण की पीड़ा।
श्रम को मिली कुहुकिनी क्रीड़ा,
प्रणय पूर्ण परिणय है।
जननी, तेरी जय है॥
पाते हैं अब सब आभिक्षा,
किसे चाहिए भौतिक भिक्षा?
सबके लिए सुलभ है शिक्षा,
दैन्य-विहीन विनय है।
जननी, तेरी जय है॥
सीमाओं के बंधन टूटे,
प्रलय युद्ध सब पीछे छूटे।
जन-जन ने जीवन रस लूटे,
हिंसा रहित हृदय है।
जननी, तेरी जय है॥
हुआ शांति का शुभागमन है,
रोगों का सर्वत्र शमन है,
दोषों का हो चुका दमन है,
सुगुणों का संचय है।
जननी, तेरी जय है॥
सबकी वंश बेल छाई है
संख्या ने समता पाई है।
बेटी गई, बहू आई है,
नित्य नया अभिनय है।
जननी, तेरी जय है॥
सबने पाया है अपना प्रिय,
किंतु नहीं कोई भी निष्क्रिय।
अब भी है कुछ कहीं अतींद्रिय,
सबका मन तन्मय है।
जननी, तेरी जय है॥
Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
©Lokatma