यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
- 1 May, 1964
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- 1 May, 1964
यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
अब तो यदा-कदा ही भूली-
बिसरी बातें मन में लाता
भूले से भी कभी नहीं वे
मीठे-मादक सुर दुहराता
जाना-पहचाना आकर्षण लगता है अब बिल्कुल झूठा
हैं अभ्यस्त पाँव इस पथ पर–
चलने के सो वे आ जाते
आदत ही होती है कुछ की
मन को नानाविध झुठलाते
गुनते रहते जीवन में क्या-क्या पाया, क्या उनसे छूटा
दृश्य पुराने अब तो लगते
जैसे सपनों की तस्वीरें
कभी जिसे पलकों में रखा–
जुगा आज रह गईं लकीरें
सारे अनुभव कठिन कमाई के, जीवन कब किससे रूठा
Image: Old Man in Warnemunde
Image Source: WikiArt
Artist: Edvard Munch
Image in Public Domain