फीजी यात्रा @ विश्व हिंदी सम्मेलन

फीजी यात्रा @ विश्व हिंदी सम्मेलन

वे दिन : वे लोग

किसी देश की भाषा केवल उस देश की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं होती, अपितु उस देश की अस्मिता का बोधक भी हुआ करती है। हिंदी भारत की केवल राष्ट्रभाषा और राजभाषा ही नहीं है, अपितु यह भारतवर्ष की अस्मिता का बोधक है। यह भारत माँ के ललाट की बिंदी है। इस पर हमें नाज और ताज है इसीलिए कहा गया है कि–

‘कोटि कोटि कंठों की भाषा
जन-मन की मुखरित अभिलाषा
हिंदी है पहचान हमारी
हिंदी हम सबकी परिभाषा।’

हिंदी के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर 12 विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्न हो चुके हैं, जो हिंदी की वैश्विकता के विग्रह हैं–‘प्रथम सम्मेलन–10-12 जनवरी, 1975–नागपुर, भारत। द्वितीय सम्मेलन 28-30 अगस्त, 1976–पोर्टलुई, मॉरीशस। तृतीय सम्मेलन 28-30 अक्टूबर, 1983–नई दिल्ली, भारत। चतुर्थ सम्मेलन 2-4 दिसंबर, 1993–पोर्टलुई, मॉरीशस। पंचम सम्मेलन 4-8 अप्रैल, 1996–पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद एंड टोबेगो। षष्ठ सम्मेलन 14-18 सितबंर 1999–लंदन, यू.के.। सप्तम सम्मेलन 6-9 जून 2003–पारामारिबो, सूरीनाम। अष्टम सम्मेलन–13-15 जुलाई, 2007–न्यूयॉर्क, यू.एस.ए.। नवम 22-24 सितंबर, 2012 जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका। दशम 10-12 सितंबर, 2015 भोपाल, भारत। एकादश सम्मेलन-18-20 अगस्त 2018 पोर्टलुई, मॉरीशस। द्वादश सम्मेलन 15-17 फरवरी 2023–नादी, फिजी।

12वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी के नादी शहर में 15, 16 और 17 फरवरी 2023 को आयोजित हुआ। फिजी भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 12 हजार किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर का एक द्वीप है। यह 300 द्वीपों का एक समूह है, जहाँ 1879 में अँग्रेज भारतीयों को ईख के खेतों में काम करने के लिए ले गए थे; जिन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था। फिजी की राजधानी सुआ है, जो एक खूबसूरत शहर है। 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन फिजी के नादी शहर के शेरेटन होटल में हुआ। 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का केंद्रीय विषय था–‘हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक।’ जिसका समवेत रूप में उद्घाटन भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और फीजी गणराज्य के राष्ट्रपति महामहिम रातू विल्यम कटोनिवेरे ने किया। महामहिम ने कहा कि आधुनिक फिजी के निर्माण में भारतवंशियों का बहुत बड़ा योगदान है, हम इसे भुला नहीं सकते, जबकि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि हमें इस बात का हर्ष है कि 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आतिथ्य फिजी कर रहा है। यह हमारे दीर्घकालिक संबंधों को आगे बढ़ाने का सुअवसर है। हिंदी फिजी में द्वितीय राजभाषा है–यह प्रसन्नता का संदर्भ है। इस अवसर पर भारतीय गृहराज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र ने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए भारत सरकार तत्पर है। विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने कहा कि हिंदी के विकास के लिए फिजी में भाषा प्रयोगशाला खुलेगा। आगत अतिथियों का भव्य स्वागत पारंपरिक ढंग से किया गया। वैदिक और लौकिक रीति से मंगलाचरण किया गया। उद्घाटन दोनों देशों के राष्ट्रगान से और उद्घाटन सत्र का समवेत संचालन अलका सिंहा और अनुराधा पांडेय ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन फिजी के शिक्षा मंत्री ने किया। भारत सरकार के 285 सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल ने इसमें भाग लिया। प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने किया। इस प्रतिनिधि मंडल में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन और गृहराज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र के साथ-साथ झारखंड की राज्यसभा सांसद डॉ. महुआ माजी के अलावे भारत के 10 सांसदों ने भी अपनी सहभागिता प्रदान की। भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में झारखंड से लोकप्रिय दैनिक प्रभात खबर के मुख्य संपादक श्री आशुतोष चतुर्वेदी, राँची विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. जे.बी. पांडेय, राज्यसभा सांसद सह साहित्यकार डॉ. महुआ माजी, जमशेदपुर के साहित्यकार श्री जयनंदन, जामताड़ा के हिंदी शिक्षक सह कवि डॉ. अरुण कुमार वर्मा ने अपनी सहभागिता प्रदान कर इस 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन को सार्थकता प्रदान की। बिहार से ‘नई धारा’ पत्रिका के संपादक डॉ. शिव नारायण, छपरा से डॉ. कुमार वरुण, जहानाबाद से डॉ. विपिन कुमार और मुजफ्फरपुर से डॉ. राजेश्वर कुमार ने और कोलकाता से डॉ. साहब उपाध्याय ने भी भाग लिया। बताते चलें कि इस 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का विषय था–‘हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक।’ 10 सत्रों में विभाजित इस विश्व सम्मेलन में झारखंड के प्रतिनिधियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने सारगर्भित वक्तव्यों से हिंदी के वैश्विक प्रचार प्रसार की कामना की।

अंतिम दिन हिंदी सेवा के लिए देश के (12) और विदेश के (13) 25 विद्वानों और विदुषियों को सारस्वत हिंदी सम्मान से सम्मानित किया गया। वैश्विक मंगल की कामना से पूर्णाहुति हुई–

‘सर्वे भवंतु सुखिनः
सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दुख भाग्भवेत्।’

भाषा और संस्कृति किसी भी देश की महत्वपूर्ण इकाई और पहचान होती है। किसी भी देश की प्रगति और विश्वास में वहाँ की भाषा की अहम् भूमिका होती है। इस संदर्भ में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का यह कथन कि ‘जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह कभी भी समृद्ध नहीं हो सकता।’ अर्थात जो पीढ़ी अपने पूर्वजों के चिर संचित ज्ञान वैभव को बचाकर सुरक्षित नहीं रखती या किसी न किसी रूप में संबर्धित नहीं करती, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं होता। महाकवि तुलसी ने मानस में ज्ञान की महिमा को स्वीकार करते हुए लिखा है कि–

‘कहहि संत मुनि वेद पुराना
नहि कछु दुर्लभ ज्ञान समाना।’

फीजी बहुभाषा भाषी एक छोटा द्वीप है और स्थिति, उपयोग और कार्य के संदर्भ में मुख्य भाषाएँ (फीजियन, हिंदी और अँग्रेजी) समान हैं। फीजी में हिंदी भाषा के दो रूप प्रचलित हैं–पहला बोलचाल की भाषा ‘फीजी हिंदी’ जिसका प्रयोग भारतीयों के साथ साथ गैर भारतीय भी दैनिक व्यवहार के लिए काम में लाते हैं और दूसरा मानक हिंदी जो फीजी सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा निर्धारित हिंदी पाठ्यक्रम के अंतर्गत स्कूलों में पढ़ाई जाती है। गिरमिट काल से ही फीजी में मानक हिंदी साहित्य का प्रारंभ हुआ, जिसमें पं. तोता राम सनाढ्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस प्रसंग में उनकी कृति ‘फीजी द्वीप में मेरे इक्कीस वर्ष’ एक ऐतिहासिक कृति मानी जाती है। फीजी में फीजी हिंदी की तुलना में मानक हिंदी को शुद्ध और उच्च माना जाता है तथा इसे शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और शिष्ट समाज की भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों, लेखन, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासंभव इसका प्रयोग करने का प्रयत्न किया जाता है। किंतु आज फीजी का हिंदी साहित्य खड़ी बोली हिंदी के अतिरिक्त फीजी हिंदी में भी उपलब्ध है। फीजी में भारतीयों के घर में फीजी हिंदी रोजाना बोली जाती है। रोजाना प्रयोग के लिए फीजी हिंदी और प्रतिष्ठानों में मानक हिंदी–इन दोनों की कमाल की जोड़ी है। आज इन दोनों को साथ साथ रखना जरूरी है और मेरा यह विचार है कि अगर दोनों साथ रहेंगी तो कभी मिटेंगी नहीं।

फीजी में हिंदी साहित्य-सृजन में स्व. पं. तोता राम सनाढ्य, पं. अमिचंद विद्यालंकार, स्व. पं. कमला प्रसाद मिश्र, स्व. जोगिंदर सिंह ‘कंवल’, स्व. डॉ. विवेकानंद शर्मा, प्रवासी कवयित्री अमरजीत कौर के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। वहीं हिंदी के विकास में फीजी हिंदी के पितामह प्रो. सुब्रमनी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उनकी कृतियाँ–‘डउका पुरान’ और ‘फीजी माँ’ प्रमुख हैं। वहीं अँग्रेजी साहित्य के अंतर्गत रेमंड पिल्लई, प्रो. सुब्रमनी और सतेन्द्र नंदन–फीजियन डायस्पोरा साहित्य के तीन प्रमुख आधार स्तंभ हैं। फीजी में हिंदी भाषा और साहित्य को विकसित और प्रचारित करने में इन साहित्यकारों का विशिष्ट योगदान रहा है। इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में फीजी के जन-जीवन, मानसिक संताप, संघर्ष, प्रवासी जीवन की संवेदनाओं के साथ-साथ परिवर्तित परिस्थितियों का यथार्थ अंकन किया है।

यह अतिशय प्रसन्नता का विषय है कि फीजी सरकार का शिक्षा मंत्रालय स्कूलों में हिंदी शिक्षण और साहित्य सृजन पर बल दे रहा है। प्राथमिक विद्यालयों में भारतीय मूल के सभी बच्चों को हिंदी भाषा विषय के रूप में चुनने की पूरी छूट है। हालाँकि वर्तमान समय में माता-पिता और युवा जितना महत्व अन्य विषयों को दे रहे हैं, उतना मान-सम्मान हिंदी भाषा को नहीं मिल रहा है। इन चुनौतियों के बावजूद गर्व की बात यह है कि हिंदी भाषा को सिर्फ प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों तक सीमित नहीं रखा गया है, अपितु फीजी के तीनों विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन कुशलता पूर्वक हो रहा है। स्नातक के साथ साथ स्नातकोत्तर की शिक्षा भी हिंदी में उपलब्ध है। वस्तुतः भारतवंशी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय सभ्यता-संस्कृति, नैतिकता-आस्तिकता, धार्मिकता और पौराणिकता को बचाए रखा है–यह हम सबके लिए उदाहरणीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है।

फीजी की खुशहाली–मैंने समाचार पत्रों और सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में पढ़ा था कि फीजी सर्वाधिक हरियाली का देश है। दुनिया के सर्वाधिक हरियाली के देश को देखने की तमन्ना बहुत दिनों से थी, सोच रहा था, दुनिया का हरियाली वाला देश कैसा होगा? क्या होगी उसकी विशेषताएँ, कैसे होंगे वहाँ के लोग? लेकिन मेरा यह सपना पूरा हुआ 14 फरवरी 2023 को, जब मैं भारत सरकार के चार्टर विमान से दिल्ली से हवाई जहाज द्वारा लगभग 21 घंटे की हवाई यात्रा कर फीजी के नादी एयरपोर्ट पर उतरा। मेरे साथ भारत सरकार के गृहराज्य मंत्री श्री अजय कुमार मिश्र और विदेश राज्य मंत्री मुरलीधरन के नेतृत्व में लोगों का प्रतिनिधि मंडल भी साथ उतरा था। सभी समागत अतिथियों का फीजी की पारंपरिक रीति से भव्य स्वागत हुआ। नाच गान करते हुए पीने के लिए मीठा नारियल पानी दिया गया और सीपियों की माला पहनाई गई। सभी फीजी बुला बुला चिल्लाने लगे। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि हुआ क्या? बस में बैठने के बाद गाइड ने बताया कि फीजी में दो शब्द बहुत प्रचलित और लोकप्रिय हैं–बुला और बिनाका। बुला का तात्पर्य है स्वागतम् और बिनाका का अर्थ है–धन्यवाद। हमारा ज्ञानवर्धन हुआ। सभी अतिथियों को ए.सी. बस में बैठाकर 5 स्टार शेरेटन होटल में आतिथ्य दिया गया।

प्रत्येक वर्ष यू.एन.ओ. द्वारा विश्व के सर्वाधिक हरियाली के देश का सर्वे होता है। 5 जून को पर्यावरण दिवस के दिन उसकी घोषणा होती है। पर्यावरण दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा स्वीडेन की राजधानी स्टॉकहोम में 5 जून 1972 को हुई थी। तब से प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है और एक सर्वे के द्वारा प्रदूषण रहित देशों की सूची बनाई जाती है और सर्वश्रेष्ठ 10 देशों को पुरस्कृत किया जाता है। मुझे यह लिखने में प्रसन्नता हो रही है कि फीजी विगत 20 वर्षों से प्रदूषण रहित देशों की सूची में 10 के भीतर परिगणित है। यह फीजी के लिए गौरव का संदर्भ है।

पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है। संपूर्ण विश्व किसी न किसी रूप में इस समस्या से जूझ रहा है। फीजी में पर्यावरण प्रदूषण है ही नहीं। चारों तरफ से प्रशांत महासागर से घिरा फीजी वनों से आछादित एक खूबसूरत टापू है; जिसके फलस्वरूप वहाँ पर्यावरण प्रदूषण होता ही नहीं। यहाँ ईख की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहाँ ईख की क्वालिटी उतम कोटि की है। फीजी सूगर का बहुत बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। चीनी यहाँ की सरकार की आय का बहुत बड़ा स्रोत है। फीजी की धरती हरियाली की चूनरी पहने हुई है। वृक्षों के कारण हरियाली सदैव बनी रहती है। अन्य देशों में हरियाली केवल श्लोगन या कागजी नारा है–

‘कड़ी धूप है जलते पाँव
वृक्ष होते तो मिलती छाँव।’

या

‘वृक्षारोपण धर्म महान
एक पुत्र दश वृक्ष समान।’

फीजी की धरती पर यह श्लोगन नहीं, हकीकत है। यही कारण है कि फीजी विश्व के सर्वाधिक हरियाली वाले देशों की प्रथम पंक्ति में प्रतिष्ठित है। प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से फीजी अनुपम और अद्वितीय है। यहाँ के वनों की शोभा न्यारी है। हरियाली चहुँ ओर है। यहाँ की प्राकृतिक शोभा देखकर छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की ‘मोह’ कविता की पंक्तियाँ सहसा याद आ जाती हैं–

‘छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले! तेरे बाल जाल में
कैसे उलछा दूँ लोचन!
भूल अभी से इस जग को।’

शायद ऐसे ही सुंदर वनों को देखकर अँग्रेजी के सुप्रसिद्ध कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट ने कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखी होगीं–

‘The woods are lovely dark & deep
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep
And miles to go before I sleep.’

हालावादी कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने उपर्युक्त काव्य पंक्तियों का सुंदर भावानुवाद किया है–

‘सघन, गहन, मनमोहक वनतरु मुझको आज बुलाते हैं
किंतु किए जो वादे मैंने, याद मुझे हो आते हैं
अभी कहाँ आराम वदा! ये मूक निमंत्रण छलना है
अरे अभी तो मीलों मुझको, मीलों मुझको चलना है।’

प्रकृति परकता फीजी की एक महती विशेषता है। यहाँ के लोग प्रकृति को ईश्वर का रूप मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कभी कहा था कि–Nature has enough to fulfill every one need, Not the every one greed. अर्थात मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रकृति के पास पर्याप्त है, लेकिन लालच की पूर्ति के लिए अपर्याप्त। फीजी वासियों ने गाँधी जी के इस मंत्र को पढ़ा ही नहीं, आत्मसात कर वनों की हरियाली को बरकरार रख इसे चरितार्थ किया है–

यह प्रसन्नता का विषय है।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को प्रबोधते हुए कहा था कि ‘योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात कर्म की कुशलता का नाम ही योग है। कर्म ही धर्म है। मैंने अपने चार दिनों के प्रवास में देखा कि वहाँ के प्रत्येक नागरिक ने कर्म की कुशलता को अपने जीवन में अपना लिया है। अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान है। जहाँ के नागरिक अपने कर्तव्य के प्रति सजग और निष्ठावान होंगे, वह देश निश्चित रूपेण विश्व का सर्वाधिक हरियाली वाला देश बनेगा। विश्व के सर्वाधिक हरियाली वाले देश फीजी की धरती ने मुझे इतना अधिक प्रभावित किया कि मैं परमात्मा से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि वे भारत को भी यह गौरव दिलाएँ। हम सभी इससे प्रेरणा लें। यह तभी संभव है जब हम अपने अतीत का स्मरण कर एक दूसरे का प्रेमभाव से पारस्परिक सहयोग करें और वृक्षारोपण को राष्ट्र धर्म के रूप में स्वीकार करें। राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त के शब्दों में–

‘मानवता के मन मंदिर में प्रेम का दीप जला दें
ऐ मेरे भगवान! इस भारत को स्वर्ग (हरियाली का देश) बना दें
सबकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाह हो
सबके हृदय में सर्वदा संवेदना की दाह हो
गुण शील साहस बल सदा, सबमें भरा उत्साह हो
हमको तुम्हारी चाह हो, तुमको हमारी चाह हो।’


Image: Beach in Fiji
Image Source: Wikimedia Commons
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