राबर्ट बर्न की कविताओं का सार्थक अनुवाद

राबर्ट बर्न की कविताओं का सार्थक अनुवाद

मनुष्य का जीवन; परिचय और अपरिचय के बीच एक अंतहीन यात्रा है। कई बार लगता है कि जिन्हें हम बरसों से जानते हैं, उनकी संवेदना कभी-कभी इतनी अपरिचित लगने लगती है कि लगता है, हम पूरी तरह परिचित हुए ही नहीं थे। साथ ही, कुछ लोगों से मिलते ही ऐसा लगता है, हम पहले क्यों नहीं मिले या यह भी लगता है, हम बरसों से परिचित लगते हैं। दो व्यक्तियों के बीच का यह तंतु जीवन की बुनावट को सार्थक बना देता है। इस बुनावट में वैचारिक समतुल्यता, कला, संगीत और साहित्य की सृजनात्मकता जैसे ताने-बाने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह परिचय बिना किसी भूमिका के प्रगाढ़ होते जाते हैं। इस परिचय का प्रस्थान-बिंदु, सम-रुचि, सम-वैचारिकता और सम-सृजन; सामान्यतः होता है। लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम के बाद मित्र कथाकार तेजेन्द्र शर्मा और कथाकार उषाराजे सक्सेना के संदर्भ से मैंने भारत की कॉन्सुलेट जनरल अंजु रंजन से फोन पर संपर्क किया। वे स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा में पदस्थ थीं। मैं अपने बेटे चि. राहुल के पास एडिनबरा गया था, जो बैंक ऑफ़ न्यूयार्क के कार्यालय में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट के रूप में तैनात था। अंजु रंजन के साथ मिलने का समय तय हुआ। राहुल मुझे उन तक ले गया। विदेश में इतने बड़े उच्च अधिकारी से मिलने का मेरे लिए यह पहला अवसर था। स्वाभाविकतः मेरे भीतर इस मुलाकात के बारे में कुतूहल तो था ही, पर मन में एक सहजता भी थी कि अंजु रंजन एक कवयित्री भी हैं।

हम कॉन्सुलेट जनरल अर्थात महावाणिज्य दूत के दफ्तर के सामने खड़े थे। तिरंगा गर्व से स्कॉटलैंड की धरती पर लहरा रहा था। दरवाजा भीतर से बंद था। बेल बजाने पर भीतर से आवाज बाहर स्पीकर पर सुनाई दी। पूछताछ हुई और दरवाजा खुला। कुछ ही क्षणों के इंतजार के बाद एक अधिकारी हमें ऊपरी मंजिल पर ले गए और अंजु रंजन जी ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। प्रारंभिक परिचय, चायपान और दुनिया जहान की बातें, कविता और साहित्य पर थम गई। फिर बातें, मुलाकातें, चर्चाएँ। एक दिन अंजु रंजन ने प्रस्ताव रखा कि रॉबर्ट बर्न स्मारक जाएँगे…आप रॉबर्ट बर्न के बारे में कुछ पढ़ लीजिएगा। यह नाम मेरे लिए नया था। मैं अपने पोते आदि के साथ लाइब्रेरी जाकर रॉबर्ट बर्न की कई पुस्तकें ले आया। मेरे लिए यह कवि नया था। पर, लाइब्रेरी में रॉबर्ट बर्न पर काफ़ी पुस्तकें थीं!

उन दिनों मैं एडिनबरा के फाउंटेन हॉल रोड पर बेटे राहुल के साथ रहता था। तयशुदा तारीख और समय पर कार आ गई। रास्ते में अंजु रंजन रॉबर्ट बर्न के जीवन के विविध पहलु बताती जा रही थीं। यहाँ से रॉबर्ट बर्न का स्मारक सड़क मार्ग से 90 मिनट का रास्ता था। लगभग सौ मील का रास्ता था। सड़कें सीधी-सपाट और सधी हुईं। देश की प्रगति को दर्शाती ये सड़कें गाड़ियों को निर्विघ्न रास्ता दे रही थीं। सड़क की दोनों ओर दूर-दूर तक खेतों की हरियाली उस पर असंख्य भेड़ें चर रही थीं, लगा हरे आकाश पर जगह-जगह सफेद तारे मंडरा रहे हों। रॉबर्ट बर्न के जीवन से परिचित होते हुए हम रॉबर्ट बर्न के जन्मस्थान म्यूजियम में पहुँच गए। वहाँ रॉबर्ट बर्न बर्थप्लेस म्यूजियम के दो अधिकारी हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। मुख्य द्वार पर रॉबर्ट बर्न का बड़ा-सा शिल्प और नीचे लिखा था ‘बर्थप्लेस ऑफ ए जिनियस’!

रॉबर्ट बर्न का जन्म 25 जनवरी, 1759 को स्काटलैंड के छोटे से गाँव ऑलोवे में हुआ। लगभग 300 वर्ष पहले बना वह मिट्टी और घास-फूस का घर आज भी स्मारक के रूप में सरकार ने यथास्थिति में सुरक्षित रखा है। भीतर-बाहर से कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इतने पुराने कच्चे मकान को पर्यटक बहुत आत्मीय मन से उस महान कवि के जन्म और बचपन को अनुभव करते हैं। दूसरी ओर सरकार ने भव्य स्मारक का निर्माण किया है। उसमें एक विशाल कैफेटेरिया है, जिसमें सैकड़ों लोग एक साथ बैठ सकते हैं। रॉबर्ट बर्न की कविताओं की पंक्तियाँ दूसरे हॉल की दीवारों पर उकेरी गई हैं। कवि के जीवन के विविध पहलुओं का चित्रांकन भीतर किया गया है। उनकी मूर्तियों के शिल्प बहुत मुखर हैं। बाहर के गलियारे में रॉबर्ट बर्न की पुस्तकें रखी गई हैं। कवि से संबंधित अन्य ग्रंथ और स्टेशनरी आदि बहुत कलात्मक उपहार-वस्तुओं की प्रदर्शनी वहाँ लगी है। आगंतुक बर्न की पुस्तक, उन पर लिखी सामग्री और उपहार वस्तुएँ खरीदते हैं। लोग अपने बच्चों-परिवार के साथ आते हैं। पुस्तकें खरीदते हैं और कैफेटेरिया में बैठकर चर्चा करते हैं। ढाई सौ वर्षों से अधिक पुराने कवि की कविताओं में अपने जीवन को पाकर पाठक धन्य हो जाते हैं। सरकार और वहाँ के लोगों ने रॉबर्ट बर्न की कृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखकर अपनी विरासत का संरक्षण ही किया है। पीढ़ियाँ बदलीं, लेकिन बर्न के पाठकों की संख्या बढ़ती ही रही। कवि के सम्मान में जनता का प्रेम सुखद अनुभूति जगाता है।

भारत की कॉन्सुलेट जनरल अंजु रंजन वहाँ के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विविध विषयों पर चर्चा कर रही थीं। यदाकदा मुझे भी इसमें शामिल होने का अवसर मिलता। मूल विषय था, रॉबर्ट बर्न की कुछ चुनिंदा कविताओं का हिंदी अनुवाद…और अंजु रंजन ने इसे कार्यरूप देने का बीड़ा उठाया। स्कॉटलैंड के अपने कार्यकाल में उन्होंने स्कॉटिश सीखी हैं। वे स्वयं हिंदी की चर्चित कवयित्री हैं, संवेदनशील हैं। रॉबर्ट बर्न की कविताओं के अनुवाद को लेकर सभी आश्वस्त थे। बाद में, अंजु रंजन ने प्रस्ताव रखा कि इस स्मारक में गाँधी जी का अर्धाकार पुतला स्थापित किया जाए। सब सहमत थे। बाद में, अंजु रंजन ने बताया कि गाँधी जी का पुतला वहाँ स्थापित किया गया है।

अंजु रंजन बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं। विज्ञान की विद्यार्थी रहीं और अँग्रेजी माध्यम से पढ़ी-लिखी होने के कारण सहज ही आइ.ए.एस. अँग्रेजी माध्यम से ही उत्तीर्ण किया। पर जो विभाग मिला वह लेखा से जुड़ा था, जिसमें उन्हें रुचि नहीं थी। उन्होंने यूपीएससी में फिर बैठने का फैसला किया। पर इस बार हिंदी को उन्होंने माध्यम के रूप में चुना। हिंदी की औपचारिक शिक्षा न होने पर उन्हें कोई बाधा दिखाई नहीं दी, क्योंकि उनकी मातृभाषा हिंदी रही, इससे भी बड़ी बात रही कि हिंदी में उन्हें अत्यधिक रुचि रही है। उन्हें कोई कठिनाई नहीं। उन्होंने यश हासिल किया और उन्हें विदेश सेवा के लिए चुना गया। विभिन्न देशों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। अँग्रेजी और हिंदी पर समान रूप से उनका अधिकार है। रॉबर्ट बर्न की कविताओं के अनुवाद हिंदी में करना उनके लिए बहुत आसान रहा, उन्होंने स्कॉटिश भी सीखी, इससे संवेदनाओं में प्रवेश कर हिंदी में अभिव्यक्त करना उनके लिए सहज हो गया। स्वयं संवेदनशील कवयित्री होने के कारण अनुवाद सटीक-सार्थक और प्रवाही आकार लेने लगा। अनुवाद के क्षेत्र में सबसे चुनौतीपूर्ण कविता का अनुवाद माना जाता है, क्योंकि कविता में शब्दातीत अभिव्यक्तियाँ भी होती हैं। दो शब्दों के, दो पंक्तियों के बीच बहुत कुछ कहा-अनकहा होता है। कई लोकाचार, प्रथा-परंपराएँ, रीति-रिवाज, संस्कृति-संस्कार एक भाषा से दूसरी भाषा में सहजता से ले जाना आसान नहीं होता। ‘लास्ट इन ट्रान्स्लेशन’ का खतरा तो रहता ही है। लेकिन अंजु रंजन ने यह चुनौती स्वीकार की। प्रशासन के उच्च पद पर रहते हुए संवेदनाओं की गहराई में उतरकर उन्होंने रॉबर्ट बर्न की स्कॉटिश कविताओं का सारगर्भित अनुवाद किया है। हिंदी पाठकों को रॉबर्ट बर्न की कविताओं से परिचित करवाने का पहला श्रेय अंजु रंजन को जाता है। इस अनूदित कृति के माध्यम से रॉबर्ट बर्न हिंदी के माध्यम से भारत के बहुत बड़े पाठक-समाज से जुड़ेंगे। संभव है हिंदी के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं तक रॉबर्ट बर्न पहुँच सकेंगे–बर्न!

रॉबर्ट बर्न की कविताओं, गीतों की ढेरों पुस्तकें हैं। कई प्रसिद्ध लेखकों द्वारा चयनित उनकी कविताएँ-गीत बेहद लोकप्रिय रहे हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि लोकप्रियता सस्ती बात होती है। ऐसी कृति अभिजात या क्लासिक की कसौटी पर चिर-प्रतिष्ठित होने में समर्थ नहीं हो पाती। पर रॉबर्ट बर्न की कविताएँ जितनी लोकप्रिय हैं, उतनी ही क्लासिकल–चिर-प्रतिष्ठित! उन्होंने प्रेम को विविध आयामों और कोणों से अभिव्यक्त किया। साथ ही जीवन के अभाव, दैन्य, विवशता, शोषण और उपेक्षा को भी उतनी ही तीव्रता के साथ व्यक्त किया है। लगभग बीसियों पीढ़ियों ने रॉबर्ट बर्न की रचनाओं को अपने जीवन और अनुभूतियों के निकट पाया है, तो यह बात प्रमाणित होती है कि कवि ने कालजयी अभिव्यक्ति को कलमबद्ध किया है। ढाई सौ साल से अधिक समय से स्कॉटलैंड के समाज में रॉबर्ट बर्न की कविताओं ने अपना लोहा मनवाया है। इतनी कालजयी और सदियों से पीढ़ियों तक रचनाओं को अमरता देने वाले कवि को केवल 37 वर्ष का जीवन मिल पाया! 27 जुलाई, 1796 को रॉबर्ट बर्न का देहांत हो गया।

‘टू अ माउस’ रॉबर्ट बर्न की विख्यात कविता है। एक चूहे का बिल, खेत में हल चलाते समय टूट जाता है। उस चूहे को संबोधित यह कविता एक छोटे जीव के जीवन से होते हुए उसका यथार्थ मानवीकरण हुआ है। चूहा मात्र एक प्रतीक है, पर बात समस्त समष्टि की है। मनुष्य के उजड़ते घर, उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य पर लगते प्रश्नचिह्न असुरक्षा और चुनौतियों की दास्ताँ, इस कविता में प्रखरता से उभरी हैं। कवि कहता है–

‘परंतु, हे लघु मूषक, तुम अकेले नहीं हो
जिसकी भविष्य की योजना विफल हुई है
सर्वोत्तम योजनाएँ चाहे वे–चूहों की हों
या मनुष्यों की
अक्सर फिसड्डी साबित होती हैं।
और हमारे हिस्से वह सोची हुई खुशियाँ नहीं आतीं
सिवा दुख और दर्द के।
तब भी–तुम मुझसे अधिक भाग्यशाली हो
क्योंकि–तुम्हें सिर्फ वर्तमान की फिक्र होती है
पर आह, मेरी विडंबना देखो–
जब मैं पीछे देखता हूँ तो
दुखद संभावनाओं से डर लगता है
और भविष्य? कुछ देख नहीं पाता
बस सोचकर डर जाता हूँ!
भूत, वर्तमान और भविष्य…
मैं हरदम डरा रहता हूँ!’

अजु रंजन ने रॉबर्ट बर्न की कविता का सटीक और सार्थक हिंदी अनुवाद किया है। कविता बहुत लंबी है, उसका कुछ अंश ही यहाँ दिया जा सका है। रॉबर्ट बर्न अन्याय, शोषण और विसंगतियों के विरुद्ध अपनी कविताओं को अभिव्यक्त करते हैं। किसी समाज या देश में जब तक ऐसी स्थितियाँ रहेंगी बर्न की कविताएँ व्यक्ति-समाज को संबल देती रहेंगी। कई मनुष्यों में वर्चस्व की चाह और श्रेष्ठता बोध इतना अधिक होता है कि वे दूसरों को बहुत छोटा और तुच्छ समझते हैं। राजतंत्र हो या लोकतंत्र ऐसे लोग अपनी उच्चता मनोग्रंथ और पराअहं के चलते दूसरों को नकारने लगते हैं। ऐसे में रॉबर्ट बर्न की कविता हाशिये पर धकेले गए व्यक्ति को थामकर कहते हैं–

‘दमन‌कारी के दुःख औ’ दर्द से
तुम्हारे बच्चों की बेड़ियों के जंजीरों से
हम अपने प्रियजनों को खो देंगे
पर वे आज़ाद रहेंगे!

आक्रांताओं का दर्प चूर-चूर कर दो
तानाशाहों पर शत्रु बनकर टूट पड़ो
आज़ादी का बिगुल फूँको
आओ, करो या मरो!!’


Image: Robert Burns at Alloway, A.Fullarton Co.1859
Image Source: Wikimedia Commons
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दामोदर खड़से द्वारा भी