उदय राज सिंह

उदय राज सिंह

हिंदी के तपोनिष्ठ साहित्य-साधक उदयराज सिंह का जन्म सूर्यपुरा (रोहतास) राजवंश में 5 नवंबर, 1921ई. को हुआ।

अल्पवय से ही उदयराज सिंह में साहित्य के प्रति रुचि थी। अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने ‘विकास’ और ‘सौरभ’ नामक हस्तलिखित पत्रिका का संपादन किया था। जब वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे, तभी से कहानी, एकांकी, उपन्यास आदि की रचना उन्होंने शुरू कर दी और मृत्युपर्यंत अविराम लिखते रहे। उनकी अब तक की प्रकाशित पुस्तकें हैं‘नवतारा’ (कहानी एवं एकांकी), ‘अधूरी नारी’ (उपन्यास), ‘रोहिणी’ (उपन्यास), ‘भूदानी सोनिया’ (उपन्यास), ‘कुहासा और आकृतियाँ’ (उपन्यास), ‘उदयराज सिंह की कहानियाँ’ (कहानी संग्रह), ‘मुस्कुराता अतीत’ (संस्मरण), ‘यादों की चादर’ (संस्मरण), ‘सफरनामा’ (यात्रा), ‘परिक्रमा’ (यात्रावृत), ‘गाँव के खिलौने’ (स्केच), ‘अनमोल रत्न’ (दो खंड) आदि। अंतिम पुस्तक को छोड़कर उनकी सभी रचनाएँ ‘उदयराज रचनावली’ के नाम से तीन खंडों में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘भूदानी सोनिया’ आचार्य बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन को लेकर लिखा गया उपन्यास है, जिसकी भूमिका लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने लिखीहै। ‘उजालों के बीच’ बिहार आंदोलन पर आधारित उपन्यास है। इनका लगभग पूरा का पूरा लेखन सामाजिक-सामयिक समस्याओं पर केंद्रित है, जिसकी सराहना साहित्य के महारथियों ने समय-समय पर की है।

इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही विज्ञान में स्नातक (1942) किया, फिर वहीं एम. ए. में पढ़ते हुए अगस्त-क्रांति में कूद पड़े। उसी दौरान श्री जयप्रकाश नारायण, श्रीमती सुचेता कृपलानी, श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे राजनेताओं के संपर्क में तो आए ही, अन्य भूमिगत क्रांतिकारी नेताओं के संपर्क में भी आकर इन्होंने काम किया। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात ‘अशोक प्रेस’ की स्थापना कर ‘नई धारा’ पत्रिका का संचालन-प्रकाशन करने लगे, जिसके आद्य संपादक थे रामवृक्ष बेनीपुरी।

बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् की अनेक समितियों में ये सदस्य रहे। ‘राजेंद्र साहित्य परिषद्’ तथा ‘समय संवाद’ के अध्यक्ष भी रहे। उस दौर के अनेक साहित्यिक संस्थानों से संबद्ध होने का भी इन्हें अवसर मिला। अनेक समारोह में दिए इनके भाषण, पत्र-पत्रिकाओं-ग्रंथों में प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित इनकी रचनाएँ पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी हैं। ‘भूदानी सोनिया’ को राजस्थान विश्वविद्यालय ने अपने बी. ए. के पाठ्य क्रम में रखा, तो ‘अँधेरे के विरुद्ध’ को मगध विश्वविद्यालय ने बी. ए. हिंदी ऑनर्स में जगह दी। 1972 में इसी उपन्यास को उत्तर प्रदेश सरकार ने विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया, तो बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने भी बहुत पहले हिंदी सेवी के रूप में इन्हें सम्मानित किया था। राजभाषा विभाग ने अपने एक लाख इक्यावन हजार के सर्वोच्च पुरस्कार डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से इन्हें समलंकृत किया। कलकत्ते से प्रकाशित हिंदी की प्रथम पत्रिका ‘उदंत मार्तंड’ की डेढ़ सौवीं जयंती मनायी गयी, तो उस अवसर पर इन्हें बंग हिंदी साहित्य परिषद् द्वारा ‘संपादक शिरोमणि’ की मानद उपाधि से विभूषित किया गया था। साहित्यकार-पत्रकार के रूप में इनकी सारस्वत साधना का सम्मान अनेक अवसरों पर हुआ। 20 जून, 2004 को ये अपनी काया से मुक्त हो गोलोकवासी हो गए।

शिवनारायण द्वारा भी