प्रेमचंद और दलित विमर्श
करीब साढ़े तीन दशक के अपने लेखन में प्रेमचंद ने विपुल साहित्य रचा। उनके लेखन के दो पक्ष हैं–सृजनात्मक और चिंतनपरक। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनातोले फ्रांस, गाल्सवर्दी, अलेक्जेंडर कुप्रिन की भी कुछ कृतियों के अनुवाद किए। ‘प्रेमचंद विविध प्रसंग’ के तीन खंडों में उनकी टिप्पणियाँ और समीक्षाएँ उनके विचारों को समझने में सहायक हैं।