स्त्रियाँ भी लिखें पुरुषों की कथा
यह एक संयोग ही रहा होगा कि जिन दो अनूदित किताबों को एक साथ पढ़ा, उनके लेखक फोर्ड फाउंडेशन की अनुदान राशि को स्वीकारने-अस्वीकारने के विवाद को लेकर चर्चा में रहे, खासकर महाश्वेता देवी। इससे भारतीय मनीषा की एक विशेषता उजागर हुई है कि नोबेल पुरस्कार को सार्त्र यदि आलू की बोरी कहकर ठुकरा सकते हैं तो दलित-शोषित आदिवासियों की जिंदगी को अपनी कलम का आधार बनाने वाली कथाकार महाश्वेता देवी भी फोर्ड फाउंडेशन के अनुदान प्रस्ताव को उससे बेहतर कारण देकर ठुकरा सकती हैं : ‘जो धन मैंने उपार्जित नहीं किया, उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं।