स्त्रियाँ भी लिखें पुरुषों की कथा

यह एक संयोग ही रहा होगा कि जिन दो अनूदित किताबों को एक साथ पढ़ा, उनके लेखक फोर्ड फाउंडेशन की अनुदान राशि को स्वीकारने-अस्वीकारने के विवाद को लेकर चर्चा में रहे, खासकर महाश्वेता देवी। इससे भारतीय मनीषा की एक विशेषता उजागर हुई है कि नोबेल पुरस्कार को सार्त्र यदि आलू की बोरी कहकर ठुकरा सकते हैं तो दलित-शोषित आदिवासियों की जिंदगी को अपनी कलम का आधार बनाने वाली कथाकार महाश्वेता देवी भी फोर्ड फाउंडेशन के अनुदान प्रस्ताव को उससे बेहतर कारण देकर ठुकरा सकती हैं : ‘जो धन मैंने उपार्जित नहीं किया, उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं।

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भारत और भारतीयता पर विचार

शिक्षा, भाषा, अलगाववाद, आतंकवाद, सुरक्षा, वैचारिक विभ्रम विचारदारिद्रय, सत्तालोलुपता के कारण तुष्टिकरण, ग्रामों का पतन नगरों का असंतुलित विकास–ये सारे विषय इस संकलन के केंद्र में हैं। सर्वप्रथम प्रो. ब्रजबिहारी कुमार ने भारत के बौद्धिक परिवेश पर विचार किया है कि भारत का बुद्धिजीवी अपने में सिमट गया है। उसे यह नहीं दिख रहा है कि प्रजाति एवं भाषा के नाम पर भारत को तोड़ने का भीषण षड्यंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है।

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सूर्यबाला: बर्फ पिघलाती हुई आत्मीयता की आँच

प्रसिद्ध लेखिका सूर्यबाला की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘अलविदा अन्ना’ उनके अमेरिका प्रवास से जुड़े अनुभवों और अनुभूतियों का सुंदर आख्यान है। अंतर-बाहर की इस यात्रा के दौरान, हर छोटी-बड़ी चीजों को जाँचने-परखने की लेखिका की सजग दृष्टि और उतने ही जीवंत चित्रण से, पाठक अनायास ही इस यात्रा से जुड़ जाता है। ‘अलविदा अन्ना’ के माध्यम से लेखिका ने समय और भौगोलिक सीमाओं से परे, अलग-अलग भाव-विश्वों की एक अत्यंत दुरुह, अनिश्चित मगर निर्णायक यात्रा का दस्तावेज प्रस्तुत किया है।

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 बर्बर सभ्यता का जवाब प्रकृति की पूजा
Chains of the Caucasus Mountains by Ivan Aivazovsky- WikiArt

बर्बर सभ्यता का जवाब प्रकृति की पूजा

राष्ट्रकवि दिनकर जी एवं नेहरु जी एक बार साथ एक मंच की ओर जा रहे थे। चलते हुए नेहरु जी के पाँवों में ठोकर सी लगी। वे लड़खड़ाये ही थे कि दिनकर जी ने तत्काल उन्हें सँभाल लिया। नेहरु जी के धन्यवाद देने पर दिनकर जी मुस्कुरा कर बोले–‘यह कोई बड़ी बात नहीं...जब सत्ता के कदम डगमगाते हैं, साहित्य ही उसे सँभालता आया है।’

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विश्व-शांति की समस्या के संदर्भ में युद्ध-परक साहित्य

‘विश्व-शांति की समस्या के संदर्भ में युद्ध-परक साहित्य’ विषय तीन शब्द-बिंदुओं से सीमित है। ये बिंदु हैं-शांति, युद्ध और साहित्य। शांति का अर्थ प्रस्तुत संदर्भ में विश्व शब्द से संबद्ध है। उसको अध्यात्म समाज और राज की तीन भिन्न दृष्टियों से समझा जा सकता है, परंतु विषय की सीमा का ध्यान रखते हुए प्रथम तथा द्वितीय दृष्टियों को छोड़ देना आवश्यक है। राजनैतिक स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों या देशों में परस्पर जो संघर्ष होते हैं, उनकी समाप्ति की स्थिति ही प्रस्तुत संदर्भ में शांति की अर्थ-सीमा में स्वीकार की जा सकती है। युद्ध की अर्थ-सीमा भी आक्रमण और उसके विरोध तक विस्तृत न मानकर, केवल विरोध की स्थिति तक मानी जानी चाहिए, क्योंकि आक्रमणकारी के पशु-बल का यदि गतिरोध न किया जाए, तो युद्ध की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। अतः तात्विक दृष्टि से युद्ध आक्रामक भावना का प्रतीक नहीं, अपितु आक्रमण-प्रतिरोध की आकांक्षा की अभिव्यक्ति है। इस दृष्टि से इतिहास के पृष्ठ पर हम जिस घटना को ‘युद्ध’ कहते हैं, वह साहित्य की भाव-भूमि पर शौर्य, शक्ति, तेज और जीवन के ओज का बोध है।

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