वसंत में
वसंत है हवा में फिर गमगीनी क्यों सपाट दोपहर अलसाई किरणें क्यों वसंत है
वसंत है हवा में फिर गमगीनी क्यों सपाट दोपहर अलसाई किरणें क्यों वसंत है
अंजुरी में समेटना समंदर और उगाना बालू पर कमल गिनती तारों की रात भर देखना उल्का पिंड सहम कर
कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अपनी माँ को खा जाते हैं माते! तेरे बहुत से सपूत इन दिनों कर रहे हैं तेरे नाम का कीर्तन। भारत माता अपनी खैर मना!
और अहंकार में डूबे वे कभी मुरझाते नहीं थे फूलों के पास वक्त ही कहाँ था
जो बदल दे आप अपना पाट, अपना द्वार यह संबंध क्या वैसी नदी है? और फिर इन बादलों की तरह नित घिरना, बरसना और छँट जाना क्या नहीं आकाश की यह त्रासदी है?
सचकहीं कुछ भी नहीं थाबस हवा के पाँवपत्थर हो गए थेतड़पकर रह गए थे शब्दमन के हाशिये परकाँपते लब परछुटता-सा जा रहा था