सुनो चिड़िया
और उस वक्त पंखों को पूरा खोल देना उस खारे जल में कर देना विसर्जित अपनी तमाम कुंठाएँ
और उस वक्त पंखों को पूरा खोल देना उस खारे जल में कर देना विसर्जित अपनी तमाम कुंठाएँ
उसके गालों की सुखी हुई लकीर और मुझे शर्मिंदा होने दो अपनी कविता पर हम रचेंगे, खूब रचेंगे दुःख क्योंकि हमारे पास सुख की ढेरों कहानियाँ हैं
इस पर मुहर कौन लगाता सारे मसले कहाँ से उठते सारे फैसले कहाँ तक जाते मेरे परों को काटा गया मेरे जिस्म को नोचा गया
आपने सर उठाया नहीं तो आप पर क्यों निशाने लगे हैंमुझको रखते थे जो ठोकरों में वो गले अब लगाने लगे हैं
मन की बात बताने में दोनों को हकलाहट हैउसका भी जी ऊब गया मुझको भी उकताहट है
किसी ने बनाए फलक, चाँद तारे किसी ने हमें ये नज़ारा दिया हैमुझे याद है अब भी भुला नहीं हूँ जो है पास मेरे तुम्हारा दिया है