तुम मुसाफ़त को आसान रखना
सुनना लाज़िम है कारों के हॉर्न राह चलते खुले कान रखनातुमसे लेंगे सबक आदमी सब उम्र भर खुद को इनसान रखना
सुनना लाज़िम है कारों के हॉर्न राह चलते खुले कान रखनातुमसे लेंगे सबक आदमी सब उम्र भर खुद को इनसान रखना
कमाने का वसीला है न खाने का कोई साधन परेशाँ आज कल हर आदमी है तो ग़लत क्या हैजहाँ रौशन दिये थे हमने फूकों से बुझाया है वहाँ पर आज फैली तीरगी है तो ग़लत क्या है
जो बदल दे आप अपना पाट, अपना द्वार यह संबंध क्या वैसी नदी है? और फिर इन बादलों की तरह नित घिरना, बरसना और छँट जाना क्या नहीं आकाश की यह त्रासदी है?
सचकहीं कुछ भी नहीं थाबस हवा के पाँवपत्थर हो गए थेतड़पकर रह गए थे शब्दमन के हाशिये परकाँपते लब परछुटता-सा जा रहा था
वह जन्मेगा बार बार राजपथ की कंकरीली छाती चीर कचनार दूब की तरह!वह गाएगा क्योंकि गाना ही सभ्यता की
फूलों के परिधान पहन जब-जब सरहुल आता है माँदर, ढोल, नगाड़े बजते जंगल भी गाता है पाँवों में थिरकन, तन में सिहरन आँखों में ख्बाब!