कवि नहीं, मेहतर चाहिए
अगर वाकई सब कुछ ठीक-ठाक होता और सकुशल और हर चीज में दिखाई देता स्पंदन तो फिर क्यों होता जन्म कविता का इस संसार में?
अगर वाकई सब कुछ ठीक-ठाक होता और सकुशल और हर चीज में दिखाई देता स्पंदन तो फिर क्यों होता जन्म कविता का इस संसार में?
माननीय सांसदों, विधायकों, नेताओं, सबके चहेते महामहिम अपराधियों! आप सबके प्रति मैं आभार प्रकट करता हूँ धन्यवाद देता हूँ
फिर फागुन आ गया डह डह डहका पलाश परदेशी अँखियन में बन अँगार लाल लाल छा गया
ट्रेनें चला करती थीं देरी से लाइनें होती थीं सिंगल जब तक एक गाड़ी दूसरे स्टेशन पर पहुँच न जाती
उन्हें कोई नहीं जानता पर कुछ समय पहले तक एक जीते जागते आदमी का नाम था- ‘हीरा भाई’
चलना उनकी भाषा है बैठना उनकी चुप्पी तुम्हें पता भी नहीं चलता जब तुम घर से बाहर रखते हो पाँव